स्वाध्याय – 16 : समवसरण के बारह कोठे

समवसरण में आठवीं भूमि श्रीमण्डपभूमि में बारह कोठे होते हैं। यहां पर संसारी जीव बैठकर तीर्थंकर भगवान की दिव्य ध्वनि सुनते हैं। आओ जानते हैं

स्वाध्याय : 21 अरिहन्त पूजा विशेष – 1

महापुराणान्तर्गत (श्रावकाचार भाग 1) में श्रावकधर्म का वर्णन करते हुए अरिहन्त देव की पूजा चार प्रकार की बताई गई है । 1.नित्यमह (सदार्पण) पूजा 2.चतुर्मुख

स्वाध्याय – 1 : ‘सूर्यास्त पश्चात भोजन विषाक्त कैसे हो जाता है?’ -अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज

भारतीय और जैन संस्कृति में साधना, ध्यान, त्याग और संयम को महत्त्व दिया गया है। यह कहा जा सकता है कि इनके बिना भारतीय और

स्वाध्याय – 2 : चंद्रगुप्त के सोलह स्वप्न- प्रस्तुति अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर

डूबते हुए सूर्य का दर्शन– यह इस बात का संकेत है कि महावीर के मार्ग को प्रकाशित करने वाला आगम का ज्ञान उत्तरोत्तर अस्त होता

स्वाध्याय – 4 : वास्तु शास्त्र

आदिकाल से ही हमारे पूर्वज वास्तु के अनुसार भवनों को निर्माण करते रहे हैं। हमारे देश में जितनी भी ऐतिहासिक इमारतें एवं भवन है उन

स्वाध्याय – 3 : तीर्थंकर की माता के सोलह स्वप्न-प्रस्तुति -अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर

तीर्थंकर के गर्भ में आने से पहले उनकी माता सोलह स्वप्न देखती उन स्वप्नों के नाम और उनका फल आप सब भी जानें। पहला स्वप्न–

स्वाध्याय – 6 : अरिहंत परमेष्ठी के केवलज्ञान के 10 अतिशय

1. भगवान् के चारों ओर सौ-सौ योजन (चार कोस का एक योजन,एक कोस में दो मील एवं 1.5 कि.मी. का एक मील) तक सुभिक्षता हो

स्वाध्याय – 5 : अरिहंत परमेष्ठी के जन्म के 10 अतिशय

1. अतिशय सुन्दर शरीर, 2. अत्यन्त सुगंधित शरीर, 3. पसीना रहित शरीर, 4. मल-मूत्र रहित शरीर। 5. हित-मित-प्रिय वचन, 6. अतुल बल, 7. सफेद खून,

स्वाध्याय – 8 : अष्ट प्रातिहार्य

देवों के द्वारा रचित अशोक वृक्ष आदि को प्रातिहार्य कहते हैं। वे आठ होते हैं-1. अशोक वृक्ष, 2. तीन छत्र, 3. रत्नजड़ित सिंहासन, 4. दिव्यध्वनि,

स्वाध्याय – 7 : अरिहंत परमेष्ठी के देवकृत 14 अतिशय

1. अर्धमागधी भाषा-भगवान् की अमृतमयी वाणी सब जीवों के लिए कल्याणकारी होती है तथा मागध जाति के देव उन्हें बारह सभाओं में विस्तृत करते हैं।