- August 22, 2025
Revue critique de Cresus pour joueurs français

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शोक संदेश:प्रिय श्री गजराज जी
स्वाध्याय – 9 : ऐरावत हाथी का वर्णन
ऐरावत हाथी एक लाख योजन विस्तार वाला होता है। एक ऐरावत हाथी के 32 मुख होते हैं। एक एक मुख पर चार चार दांत। प्रत्येक
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शोक संदेश:प्रिय श्री गजराज जी
स्वाध्याय – 10 : श्रवणबेलगोला के भगवान बाहुबली की मूर्ति की ऊंचाई का वर्णन
श्रवणबेलगोला के भगवान बाहुबली की मूर्ति की ऊंचाई – 58.8 फीट पांव की ऊंचाई – 2’8’’ पांव की आदि से घुटने तक – 15’2’’ पांव
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शोक संदेश:प्रिय श्री गजराज जी
स्वाध्याय – 11 : धन का खर्च किन क्षेत्रों में करें
1. भगवान के प्रतिबिंब (प्रतिमा) बनवाने में 2. जैन मंदिर के लिए 3. जिन पूजा के लिए 4. जिनप्रतिष्ठा के लिए 5. सिद्ध क्षेत्रों की
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शोक संदेश:प्रिय श्री गजराज जी
स्वाध्याय – 12 : चार अनुयोग
प्रथमानुयोग : पुण्य रूप अर्थ का व्याख्यान करने वाला चरित्र को, पुराण को, बोधि- समाधि के निधान भूत कथा वर्णन को जानता है उसे सम्यग्ज्ञान प्रथमानुयोग
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शोक संदेश:प्रिय श्री गजराज जी
स्वाध्याय – 13 : सात प्रकार के केवली
1 तीर्थंकर केवली : 2,3 एवं 5 कल्याणक वाले केवली । 2 सामान्य केवली : कल्याणकों से रहित केवली । 3 अन्तकृत केवली : जो मुनि उपसर्ग होने
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शोक संदेश:प्रिय श्री गजराज जी
स्वाध्याय – 14 : ज्ञानाराधना के आठ दोष
1.स्वाध्याय के समय का ध्यान न रखना पहला दोष है । 2.शुद्ध उच्चारण न करना,अक्षरादिक को छोड़ जाना दूसरा दोष है । 3.शास्त्र का अर्थ
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शोक संदेश:प्रिय श्री गजराज जी
स्वाध्याय – 15 : सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति के बाह्य कारण
नरकगति में – जाति स्मरण, धर्मश्रवण ,वेदना अनुभव (तीसरी पृथ्वी तक) और उसके बाद चौथी पृथ्वी से सातवीं पृथ्वी तक जाति स्मरण, वेदना अनुभव से ।
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शोक संदेश:प्रिय श्री गजराज जी
स्वाध्याय-17 : स्वाध्याय के पांच भेद
• आलस्य का त्यागकर ज्ञान की आराधना करना निश्चय स्वाध्याय है। • व्यवहार में स्वाध्याय के पांच भेद हैं । 1.वाचना – निर्दोष ग्रन्थ (अक्षर) और
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शोक संदेश:प्रिय श्री गजराज जी
स्वाध्याय – 19 : आहार दान ऐसे करना चाहिए
नवपुण्यैः प्रतिपत्तिः सप्तगुण समाहितेन शुद्धेन । अपसूनारम्भाणा मार्याणामिषयते दानम् ।। 113।। (रत्नकरण श्रावकाचार) पाँचसूनरूप पापकार्यों से रहित आर्य (धार्मिक) पुरुषों को नौ पुण्यों के (नवधा
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शोक संदेश:प्रिय श्री गजराज जी
स्वाध्याय – 18 : तीर्थंकर विशेष
• कलश : तीर्थंकर भगवान के जन्म अभिषेक के कलश का मुख एक योजन (12 किलोमीटर), उदर में चार योजन और गहराई में आठ योजन का होता