आचरण की पवित्रता से ही सम्यक चारित्र की प्राप्ति – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

अपने आप को पांच पापों से बचाने का नाम ही सम्यक्चारित्र है। हिंसा आदि पाप मन, वचन और काय के द्वारा ही होते हैं। इन

राग द्वेष से संयम खो देता है जीव- अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

जीव राग-द्वेष के कारण अपना संयम खो देता है। उसे सही- गलत बात का ध्यान नहीं रहता है। बस वह राग में या द्वेष में

धर्म के निमित्त हुई हिंसा दुख का कारण नहीं-अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

धर्म का रथ दो पहियों से चलता है। पहला पहिया श्रावक का जो घर में रहकर धर्म करता है और दूसरा पहिया मुनियों का जो

जिसका जीवन व्यवस्थित वही सफल- अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

जिसका जीवन व्यवस्थित हो वही मनुष्य जीवन में सफलता को प्राप्त करता हुआ परमात्मा पद को प्राप्त होता है। हम जिन महापुरुषों की बात करते

गृहस्थ के लिए अणुव्रत की पालना- अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

गृहस्थ के आचरण को मर्यादित करने के 12 प्रकार के व्रतों का वर्णन पहले पढ़ा है, उसमें पहले अणुव्रत के पांच भेदों के स्वरूप को

किसी को दुख पहुंचाना भी हिंसा -अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर

हिंसा का मतलब मात्र किसी जीव की हत्या कर देना नहीं है। किसी के मन को दुःख पहुंचाना भी हिंसा ही है। अंधे को अंधा

अनाचार से बचें तभी व्रत का उत्तम पालन-अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

जो नियम, व्रत लिया है, उसमें अनजाने में, प्रमाद कर्म उदय से जो दोष लग जाए या यह कहने कि व्रत का एक देश भंग

राग द्वेष की भावना से बोला गया वचन असत्य -अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

जो पदार्थ जिस रूप मे है, उस रूप में नहीं कहना, पर उसका कार्य सिद्ध हो जाना, जैसे कमण्डल को कमण्डल नहीं कहकर घटा कह

आगम के अभ्यास से दूर होता है अज्ञानमूलक असत्य -अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

किसी भी प्रकार के दबाव, राग-द्वेष, कषाय आदि में आकर, हंसी मजाक में, सत्य बात है पर इस भावना से शिकायत करना कि इसे डांट

अचौर्य अणुव्रत के पालन से चिंतामुक्त जीवन -अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

पांच अणुव्रत में आज तीसरे अचौर्यणुव्रत की बात करेंगे। इस अणुव्रत का पालन करने पर न पुलिस की, न वकील की, न चौकीदार की, न