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Jun
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छहढाला
पांचवी ढाल
भावनाओं के चिन्तन से लाभ
मुनि सकलव्रती बड़भागी, भव भोगनतें वैरागी ।
वैराग्य उपावन माई, चिन्तें अनुप्रेक्षा भाई ।। 1।।
अर्थ- हे भाई! महाव्रती मुनिराज बड़े भाग्यवान हैं, वे संसार और भोगों से विरक्त हो जाते हैं। वे मुनिराज वैराग्य को उत्पन्न करने के लिए माता के समान बारह भावनाओं का चिन्तन करते हैं।
• संसार शरीर और भोगों आदि का बार बार चिंतन करना अनुप्रेक्षा है । अध्रुव,अशरण,संसार,एकत्व,अन्यत्व,अशुचित्व,आस्रव,संवर,निर्जरा,लोक,बुद्धि दुर्लभ,धर्म नाम वाली ये अनुप्रेक्षाएँ बाहर है ।
• जो पांचों पापों का नवकोटी से त्याग कर सम्पपूर्ण अंशो में व्रतों का पालन करते हैं वे महाव्रती दिगम्बर साधु सकल व्रती है ।
• संसार,शरीर और भोगों से उदासीन परिणाम होना वैराग्य है ।
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