10
Apr
पहली ढाल
संसार भ्रमण का कारण
ताहि सुनो भवि मन थिर आन, जो चाहो अपनो कल्याण।
मोह-महामद पियो अनादि, भूल आपको भरमत वादि॥3।।
अर्थ – हे भव्यजीवों! यदि तुम अपनी भलाई या सुख चाहते हो तो उस कल्याणकारी उपदेश को स्थिर मन से सुनो। यह जीव अनादिकाल से मोहरूपी मदिरा-शराब पीकर अपने स्वरूप को भूलकर व्यर्थ में चारों गतियों में भ्रमण कर रहा है।
विशेषार्थ – रत्नत्रय की प्राप्ति की योग्यता युक्त जीव को भव्य कहते हैं। परपदार्थों में अपनत्व बुद्धि होना, मोह कहलाता है। जिसकी आदि अर्थात् प्रारंभ न हो, उसे अनादि कहते हैं।[/vc_column_text][/vc_column][/vc_row]
Please follow and like us:
Give a Reply