जीवन में अगर अच्छा ग्रहण करने का भाव हो तो किसी भी घटना से प्रेरणा ली जा सकती है। पद्मपुराण के पर्व 96 में उस प्रसंग का उल्लेख है जो प्रजा ने राम से सीता के संदर्भ में कहे थे। प्रजा ने क्या कहा था, आओ जानते हैं।
महेन्द्रोदय उद्यान में सीता की आंख फड़कने लगी, उसी समय राम के पास प्रजा का प्रतिधिनित्व करते हुए कुछ मनुष्य आए। उनमें जो मुख्य प्रतिनिधि था, वह राम से डरते हुए कहने लगा- राजन, प्रजा मर्यादारहित हो रही है। पापी मनुष्य अवसर पाकर निर्बल मनुष्यों की स्त्रियों का हरण कर रहे हैं। मनुष्य अपनी स्त्री को पहले छोड़ देता है और दुखी करता है, फिर बाद में स्वयं दुखी होता है तो किसी अन्य की मदद से स्त्री को वापस बुला लेता है। धर्म की मर्यादा छूट रही है। प्रजा के हित में कुछ उपाय सोचे जाएं। आप प्रजा के राजा हैं। इस समय हमें संकट से निकाले और प्रजा की रक्षा करें। अगर आप रक्षा नहीं करते हैं तो प्रजा नाश को प्राप्त हो जाएगी। वर्तमान में नदी,उपवन,सभा,ग्राम,प्याऊ,मार्ग,नगर तथा घरों में एक अवर्णवाद को छोड़कर और कोई चर्चा नहीं है कि राजा दशरथ के पुत्र राम समस्त शास्त्रों के जानकार होकर भी रावण द्वारा हरण की गई सीता को पुनः वापस ले आए। यदि हम लोग भी ऐसा व्यवहार का आश्रय लें तो उसमें कुछ दोष नहीं है। क्योंकि जगत के लिए तो विद्वान ही परम प्रमाण होते हैं। दूसरी बात यह है, राजा जैसा काम करता है, प्रजा भी वैसा ही करती है। दुष्ट हृदय वाले मनुष्य स्वच्छन्द होकर इसी तरह का अपवाद कर रहे हैं। यह सब सुनकर राम विचिलित हो गए। इस प्रसंग से यह बात स्वतः उठती है कि जब सीता पर इस तरह का अपवाद लग सकता है तो फिर हमारा क्या होगा? हमें कैसे और किस तरह से उठना-बैठना, घूमना और क्या पहनना चाहिए, इसकी प्रेरणा इस प्रसंग से लेनी चाहिए।
अनंत सागर
प्रेरणा
17 जून 2021, गुरुवार
भीलूड़ा (राज.)
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