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भाग दो : मैं राक्षस नहीं… राक्षस वंश का हूँ! – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज
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रावण – भाग आठ : मैं रावण… कुलधर्मी, सच्चा क्षमाधर्मी! – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज
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भाग छः : मैं रावण… एक सच्चा प्रभु भक्त! – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज
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भाग एक : मैं रावण… भविष्य का तीर्थंकर! – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर महाराज
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हिन्दुस्तान के हृदय प्रदेश में ज्ञान और प्रज्ञा की धमनियों से सिंचित एक वीतरागी का मन–मस्तिष्क प्राणीमात्र के उद्धार की लौ जगाए है । स्व और स्वत्व को परमार्थ के लिए स्वाहा कर सर्वकल्याण के निमित्त निकला यह वीतरागी कुछ लक्ष्यों और सपनों के लिए समर्पित भाव से अपनी ही चाल से आगे बढ़ता जा रहा है।

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