मुनि पूज्य सागर की डायरी से

मौन साधना का 44वां दिन। धार्मिक कार्यों में  अपने- अपने मनमुटाव या धार्मिक अनुष्ठान में लाभ-हानि का हिसाब देखेंगे तो धार्मिक अनुष्ठान में संक्लेश होगा। संक्लेश भाव से किया धार्मिक अनुष्ठान कर्म निर्जरा का कारण भी नहीं बनता और न ही  प्रभावना का कारण बनता है। बल्कि इस प्रकार से किए जाने वाले अनुष्ठान समाज को तोड़ने का काम करते हैं। न जाने किस कर्म के उदय से इंसान धार्मिक अनुष्ठान करने से पहले नकारात्मक सोच रखते हैं। पूर्व भव में मुनियों को आहार देने के एक कार्य के चलते राम को वनवास जाना पड़ा। अंजना ने पूर्व भव में जिनेन्द्र की प्रतिमा का अपमान किया तो उसे भी गर्भ अवस्थान में जंगल में भटकना पड़ा, ऐसे कई उदाहरण हैं।

इन सबसे हमें समझना चाहिए कि धार्मिक अनुष्ठानों, कार्यों में किसी प्रकार की नकारात्मक सोच नहीं रखनी चाहिए। वैसे मैंने 20 सालों में अनुभव किया है कि सामाजिक स्तर पर कार्यक्रम होते हैं तो धार्मिक अनुष्ठान से किसी को कोई तकलीफ नहीं होती है, तकलीफ होती है सिर्फ इस कारण से कि, उसे कौन सा गुट कर रहा है। एक ने कार्यक्रम करने के बनाया तो दूसरा उस कार्यक्रम को लेकर अपनी नकारात्मक सोच देगा। बस, अपने मनमुटाव के कारण ही हम न चाहते हुए भी धार्मिक अनुष्ठानों में बाधक बन जाते हैं। न जाने इंसान यह क्यों नहीं समझ पाता है कि यह राजनीति नहीं, धर्मनीति है और वैसे भी इंसान को यह समझना चाहिए कि उसके पापकर्म को नष्ट करने के लिए आवश्यक 4 देवपूजन में से पहला कर्तव्य है। इंसान को यह सब सोचना चाहिए कि अपने मतभेद को धार्मिक अनुष्ठान के साथ ना जोड़कर अपनी आपसी बात चित्त से दूर करें।

शुक्रवार, 17 सितम्बर, 2021 भीलूड़ा

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