आचार्य श्री शांतिसागर महाराज ने एक बार कहा था कि उपवास में आत्मा नहीं है, इसके बावजूद उपवास करना चाहिए, क्योंकि उपवास या अल्प आहार से प्रमाद कम होकर विचार-शक्ति बढ़ती है। इससे उपवास की उपयोगिता स्पष्ट हो जाती है। जब प्रमाद कम होगा तो विचार शक्ति बढ़ेगी। इससे आत्मा अपने योग्य सामग्री सरलता से प्राप्त कर लेगी। आचार्य श्री ने कहा कि हमारी आत्मा को अशांति होती ही नहीं है। हमने अशांति के सारे कारणों को हटा दिया है। बस अब हम सदैव अपनी आत्मा की साधना में लगे रहते हैं। आचार्य श्री से एक बार किसी ने पूछा कि ध्यान क्या होता तो उन्होंने ध्यान के बारे में स्पष्ट करते हुए कहा था कि इसमें ध्याता ज्ञान से ज्ञान को ढूंढता है। ध्याता के मन से भाव बाहर आता है, पीछे वापस जाता है। आत्मा अपने स्वरूप को छोड़कर बाहर कहां जाएगी? अभ्यास से सब काम सरल हो जाता है, निरंतर अभ्यास के मार्ग पर चलने से सफलता मिलती है। मार्ग छोड़कर चाहे प्राण भी दो, चाहे उपवास करो, परमार्थ की प्राप्ति नहीं होगी।

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