अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर महाराज से यूं तो मेरा रिश्ता ऐसा ही था, जैसा कि एक संत और एक श्रद्धालु के बीच होता है लेकिन जब मैंने जाना कि मुनि श्री 48 दिन की मौन साधना में लीन हैं तो उनके प्रति श्रद्धाभाव और बढ़ गया। इसके बाद इसी मौन साधना के दौरान मुनि श्री के राजस्थान पत्रिका में प्रकाशित चिंतन से मैं बहुत प्रभावित हुआ। हर रोज मैं चिंतन पढ़ता और इसके साथ ही मन में यह उत्सुकता जाग जाती कि मुनि श्री अगले दिन क्या लिखने वाले हैं। लोग कहते हैं कि संत का जीवन एक खुली किताब की तरह होता है, मुनि श्री के चिंतन पढ़ने के बाद मैंने इस बात को प्रत्यक्ष महसूस भी किया। वह देव- शास्त्र को मानने वाले ऐसे वीतरागी हैं, जो धर्म की जितनी चिंता करते हैं, उतनी ही चिंता उन्हें समाज में व्याप्त कुरीतियों और बुराइयों को दूर करने की भी है।
महेशचंद मान
उप जिला कलेक्टर, किशनगढ़
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