अंतर्भाव : अपना समय पुण्य करने और पाप का नाश करने में लगाइए – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज9 Apr at 2:20 pmपद्मपुराण के पर्व 74 में एक प्रसंग आता है। यह प्रसंग बहुरूपिणी विद्या सिद्ध होने के बाद जब रावण युद्ध…
अंतर्भाव : अपने किए का फल तो भोगना ही होता है – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज2 Apr at 3:34 pmपद्मपुराण के पर्व 72 में कहा गया है कि जब रावण शत्रु पक्ष से युद्ध के लिए सोच रहा था…
अंतर्भाव : मैं अच्छा तो जग अच्छा – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज26 Mar at 12:24 pmवर्तमान में अधिकांश व्यक्तियों से यह सुनने में आता है कि जमाना बड़ा खराब है। इससे बड़ी मूर्खता की बात…
अंतर्भाव : शरीर की सुंदरता प्रसाधनों से नहीं शुभ कर्मों से होगी – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्यसागर जी महाराज19 Mar at 11:41 amन जाने कितनी बार इस मल से भरे शरीर को सौंदर्य प्रसाधनों के माध्यम से सुंदर बनाने की कोशिश की…
अंतर्भाव : जिसने दान, दया नहीं की उसे सुख नहीं मिल सकता – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्यसागर जी महाराज12 Mar at 12:11 pmपद्मपुराण के पर्व 59 में एक आध्यात्मिक उपदेश आया है, जो आत्मचिंतन के लिये उपयोगी है। यह हमें सत्कर्म करने…
अंतर्भाव : पूर्व में अर्जित कर्मों से मिलते हैं सुख-दुख – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज5 Mar at 1:41 pmपद्मपुराण के पर्व 14 में प्रसंग है कि रावण के निवेदन पर रावण के साथ अनेक भव्य प्राणियों को सुवर्णगिरी…
अंतर्भाव : अशुभ कर्म के नाश से मनुष्य पर्याय मिलती है – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज26 Feb at 2:00 pmपद्मपुराण के पर्व 17 में आर्यिका संयमश्री माता जी अंजना को उस समय अध्यात्म ज्ञान देती हैं जब अंजना जिन…
अन्तर्भाव : जो कल्याणकारी वचन कहे या सुने वही मानव बाकी पुतले – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज19 Feb at 4:09 pmपद्मपुराण के पर्व 5 में शरीर और उसके अंगों को लेकर चिंतन है। इसका हमे भी चिंतन करना चाहिए ।…
अंतर्भाव : मनुष्य जन्म ही श्रेष्ठ – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज12 Feb at 2:00 pmपद्मपुराण के पर्व 14 में मनुष्य भव की महत्ता को बताते हुए एक आत्मचिंतन वाला प्रसंग आया है। उसका कुछ…
अंतर्भाव : धर्म रहित कार्य से व्यक्ति नरक को प्राप्त करता है – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्यसागर जी महाराज5 Feb at 1:08 pmजीवन में दुःख के कारणों का निरंतर चिंतन करते रहना चाहिए। इससे दुःख के कारण धीरे-धीरे छूटते जाते हैं। पद्मपुराण…