पद्मपुराण पर्व 96 में राम के मन में उत्पन्न हुए विचारों का प्रसंग आया है। आओ जानते हैं क्या है वह…
प्रजा ने सीता पर अपवाद लगाया जिसे सुनकर कर राम विचार करने लगे, हाय- हाय बड़ा कष्ट आ गया है। मेरे यश रूपी कनलवन को जलाने के लिए यह अपयशरूपी अग्नि है जो लग गई है। जिसके लिए मैंने समुद्र के पार जाकर शत्रुओं का संहार करने वाला युद्ध किया था, वही जानकी मेरे कुलरूपी दर्पण को मलिन रही है। देश के लोग ठीक ही तो कहते हैं, जिस घर का पुरुष दुष्ट है, ऐसे पराये घर में कुछ समय रही सीता को मैं क्यों ले आया? सीता को मैं क्षणमात्र भी नहीं देखता हूं तो विरहाकुल हो जाता हूं। इस अनुराग से भरी प्रियदयिता को मैं इस समय कैसे छोड़ दूं। जो मेरे चक्षु और मन में अवस्थित है, गुणों की भण्डार एवं निर्दोष सीता का परित्याग कैसे कर दूं। उन स्त्रियों के चित्त की चेष्टा को कौन जानता है जिनमें दोषों का कारण काम साक्षात निवास करता है। जो समस्त दोषों की खान है, संताप का कारण है तथा निर्मल कुल में उत्पन्न हुए मनुष्यों के लिए कठिनाई से छोड़ने योग्य पंकस्वरूप है,उस स्त्री के लिए धिक्कार है। जो देवांगनाओं में भी सब प्रकार से श्रेष्ठ है तथा जो प्रीति के कारण मानो एकता को प्राप्त है उस साध्वी को कैसे छोड़ दूं। उठी हुई साक्षात अपकीर्ति के समान मैं इसे यदि नहीं छोड़ता हूं तो पृथ्वी पर इस विषय में मेरे समान दूसरा कृपण नहीं होगा। राम ने ऐसा चिंतन किया। आपको भी इस संसार की व्यवस्थाओं को जानकर अपने लिए भी चिंतन करना चाहिए।
अनंत सागर
अंतर्भाव
18 जून 2021, शुक्रवार
भीलूड़ा (राज)
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