पद्मपुराण के पर्व 74 में एक प्रसंग आता है। यह प्रसंग बहुरूपिणी विद्या सिद्ध होने के बाद जब रावण युद्ध के लिए निकलता है तब का है। यह प्रसंग हम सब को पुण्य और पाप का फल बताता है और आत्म चिंतन करने को कहता है।
आइए देखें क्या लिखा है-
युद्ध में किसी को विजय प्राप्त होती है तो किसी को पराजय। इस विजय और पराजय से स्पष्ट पता चलता है कि जीवन में शुभ-अशुभ कर्मों फल मिलता ही है। कितने ही सैनिक पुण्य के उदय से अनेकों सैनिकों पर विजय प्राप्त करते हैं और कई सैनिक पाप कर्म के कारण युद्ध में हार जाते हैं। जिन्होंने पूर्व भव में पुण्य और पाप दोनों का संचय किया है वह सैनिक दूसरे सैनिकों पर विजय प्राप्त करते हैं और जब मृत्यु निकट आती है तो दूसरे सैनिकों के द्वारा मारे जाते हैं।
इससे लगता है धर्म ही प्राणों की रक्षा करता है। धर्म से ही विजय प्राप्त होती हैं। धर्म ही सुखी जीवन जीने में सहायक होता है और धर्म ही सब ओर से देख-रेख करता है। जो मनुष्य पूर्व भव के पुण्य से रहित है उसकी रक्षा घोड़ों से जुते हुए दिव्य रथ, पर्वत के समान हाथी, पवन के समान वेगशाली घोड़े और असुरों के समान पैदल सैनिक भी नही कर सकते हैं और जो पूर्व भव के पुण्य से सहित है वह अकेला ही शत्रुओं को जीत लेता है।
इस चिंतन का सार यही है कि मनुष्य को अपना अधिकांश समय पुण्य करने और पाप का नाश करने में लगाना चाहिए। हर समय सकारात्मक चिंतन रखना चाहिए।
अनंत सागर
अंतर्भाव
पचासवां भाग
9 अप्रैल 2021, शुक्रवार, भीलूड़ा (राजस्थान)
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