धर्म के अनुसार चलने की प्रतिज्ञा लें – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज

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dharm ke anusaar chalne ki pratigya le

पद्म पुराण के पर्व 77 में एक प्रसंग है जिसमें रावण के मरण के बाद विभीषण को दुःख हुआ तो राम-लक्ष्मण विभीषण को आत्मिक शांति के लिए समझाते हैं…

राम लक्ष्मण स्नेह के साथ विभीषण को समझाते हैं कि इस तरह रोना व्यर्थ है। अब विषाद छोड़ो। तुम धर्म के जानकार हो और धर्म कहता है कि कर्म बलवान होते हैं । पूर्व कर्म के उदय से जो होना है उसे कौन रोक सकता है। जो होना था सो हो गया अब शोक करने से क्या होगा । मनुष्य जब नहीं करने योग्य कार्य करता है तभी मरण को प्राप्त होता है। फिर रावण तो चिरकाल के बाद मरण को प्राप्त हुआ है अतः इसमें शोक क्या करना ? जो हमेशा प्रीतिपूर्वक संसार का हित करता रहता था,जिसकी बुद्धि सदा सावधान रहती थी,जो प्रजा के कार्य मे पंडित था,जो समस्त शास्त्रों का जानकार था ,जिसकी आत्मा ज्ञान से धुली हुई थी ऐसा रावण मोह के कारण इस अवस्था को प्राप्त हुआ है। रावण ने इस अपराध से विनाश का अनुभव किया है सो ठीक ही है क्योंकि विनाश के समय मनुष्यों की बुद्धि अंधकार के समान हो जाती है। यह चिंतन हम सब के लिए अनुकरणीय है क्यों कि हम सब की भी यही दशा है । हम इस चिन्तन से संसार के दुःखों को समझकर अपने भावों को निर्मल कर धर्म के अनुसार चलने की प्रतिज्ञा करें।

अनंत सागर
अंतर्भाव (इक्यावनवां भाग)
16 अप्रैल,शुक्रवार 2021
भीलूड़ा (राज.)

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