जिनेन्द्र के दर्शन और उनकी भक्ति सच्चे मानव (श्रावक) का प्रथम कर्तव्य है। जिनेन्द्र भक्ति व दर्शन किए बिना मानव की सभी क्रियाएं निरर्थक हैं। जिनेन्द्र के दर्शन से सम्यक्त्व की प्राप्ति होती है। मानव कितना भी धर्म से विपरीत आचरण करने वाला हो, वह जिनेन्द्र भगवन के दर्शन से सम्यक्त्व को प्राप्त कर स्वयं को संयमिय कर लेता है।
भगवान महावीर की देशना (उपदेश) 66 दिनों तक नहीं खिरी, तब देवता विचार करने लगे कि क्या बात है! भगवान की दिव्य-ध्वनि (वाणी) अभी तक नहीं खिरी। तब पता लगा कि भगवान की वाणी को समझने वाला कोई नही है। तब इन्द्र को पता चला कि इन्द्रभूति गौतम ही भगवान की वाणी को समझ सकता है, पर वह तो अपने शिष्यों के साथ धर्म से विपरीत मार्ग का पोषण करने वाला है। इसे कैसे सम्यक मार्ग पर लाए, तब इन्द्र ने सोचा कि कोई भी यतन कर एक बार महावीर के समोशरण तक ले जाए। फिर जो होगा, उसे देखते हैं।
इन्द्र में इंद्रभूति गौतम को प्रश्नों के जाल में इस प्रकार उलझाला कि इंद्रभूति समवशरण में आने को मजबूर हो गए। जैसे ही वह समवशरण में आया, मानस्तम्भ में जिनेन्द्र के दर्शन किए तो इंद्रभूति का विपरीत ज्ञान जिनेन्द्र के दर्शन से उसी समय सम्यक हो गया। उसने वही दीक्षा ले ली। वह महावीर का प्रथम गणधर बन गया। साथ ही महावीर की दिव्य-ध्वनि उसी समय खिर गई। यही है सच्चे मन से जिनेन्द्र के दर्शन का फल। तुम्हें भी विपरीत ज्ञान या धारण हो तो जिनेन्द्र के दर्शन कर लेने से सही निर्णय हो जाएगा।
अनंत सागर
श्रावक
सैत्तीसवां भाग
13 जनवरी, 2021 बुधवार, बांसवाडा
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