हम पहले जिन अहिंसा आदि पांच अणुव्रतों और उनके अतिचारों का क्रमशः वर्णन कर के आए हैं। उन्हीं अणुव्रतों में प्रसिद्ध हुए मुख्य श्रावकों के नाम भी जैन शास्त्रों में दिए गए हैं। उनके जीवन की कथा को समझकर हम भी अपने भावों को मजबूत कर सकते हैं ।
आचार्य समन्तभ्रद स्वामी ने रत्नकरण्ड श्रावकाचार में अणुव्रतों में प्रसिद्धि को प्राप्त हुए श्रावकों के नाम बताये हैं …
मातङ्गो धनदेवश्च, वारिषेणस्ततः परः ।
नीली जयश्च सम्प्राप्ताः, पूजातिशयमुत्तमम् ॥ 64॥
अर्थात- अणुव्रत धारियों में अहिंसाणुव्रत में यमपाल नामक चाण्डाल, सत्याणुव्रत में धनदेव, अचौर्याणुव्रत में वारिषेण , ब्रह्मचर्याणुव्रत में वणिकपुत्री नीली और परिमित परिग्रह अणुव्रत में जयकुमार आदि प्रसिद्ध और पूजा के अतिशय को प्राप्त हुए हैं।
पहले अहिंसाणुव्रत में प्रसिद्ध यमपाल चाण्डाल की कहानी
सुरम्य देश पोदनपुर नगर में राजा महाबल रहता था। नंदीश्वर पर्व की अष्टमी के दिन राजा ने यह घोषणा की कि आठ दिन तक जीवघात नहीं किया जाएगा। राजा का बल नाम का एक पुत्र था, जो कि मांस खाने में आसक्त था। उसने यह विचार कर कि यहाँ कोई पुरुष दिखाई नहीं दे रहा है, इसलिये छिपकर राजा के बगीचे में राजा के मेंढा को मरवाकर तथा पकवाकर खा लिया। राजा ने जब मेंढा मारे जाने का समाचार सुना, तब वह बहुत क्रुद्ध हुआ। उसने मेंढा मारने वाले की खोज शुरू कर दी। उस बगीचे का माली पेड़ के ऊपर चढ़ा था। उसने मेंढा को मारते हुए राजकुमार को देख लिया था। माली ने रात में यह बात अपनी स्त्री से कही। तदनन्तर छिपे हुए गुप्तचर पुरुष ने राजा से यह समाचार कह दिया। प्रातःकाल माली भी बुलाया गया। उसने भी यह समाचार फिर कह दिया। मेरी आज्ञा को मेरा पुत्र ही खण्डित करता है, इससे रुष्ट होकर राजा ने कोटपाल से कहा कि बलकुमार के नौ टुकड़े करा दो अर्थात् उसे मरवा दो।
तदनन्तर उस कुमार को मारने के स्थान पर ले जाकर चाण्डाल को लाने के लिये जो आदमी गये थे।उन्हें देखकर चाण्डाल ने अपनी स्त्री से कहा कि प्रिये तुम इन लोगों से कह दो कि चाण्डाल गाँव गया है। ऐसा कहकर वह घर के कोने में छिपकर बैठ गया। जब सिपाहियों ने चाण्डाल को बुलाया तब चाण्डाली ने कह दिया कि वह आज गाँव गया है। सिपाहियों ने कहा कि वह पापी अभागा आज गाँव चला गया। राजकुमार को मारने से उसे बहुत भारी सुवर्ण और रत्नादि का लाभ होता। उनके वचन सुनकर चाण्डाली को धन का लोभ आ गया। अतः वह मुख से तो बार-बार यही कहती रही कि वह गाँव गया है परन्तु हाथ के संकेत से उसे दिखा दिया। तदनन्तर सिपाहियों ने उसे घर से निकाल कर मारने के लिये राजकुमार सौंप दिया। चाण्डाल ने कहा कि मैं आज चतुर्दशी के दिन जीवघात नहीं करता हूँ। तब सिपाहियों ने उसे ले जाकर राजा से कहा कि देव यह राजकुमार को नहीं मार रहा है। उसने राजा से कहा कि एक बार मुझे साँप ने डस लिया था, जिससे मृत समझकर मुझे श्मशान में डाल दिया गया था। वहाँ सर्वौषधि ऋद्धि के धारक मुनिराज के शरीर की वायु से मैं पुनः जीवित हो गया उस समय मैंने उन मुनिराज के पास चतुर्दशी के दिन जीवघात न करने का व्रत लिया था, इसलिये आज मैं नहीं मार रहा हूँ। आप जो जानो सो करो। अस्पृश्य चाण्डाल के भी व्रत होता है यह विचार कर राजा बहुत रुष्ट हुआ और उसने दोनों को मजबूत बंधवाकर सुमार (शिशुमार) नामक तालाब में डलवा दिया। उन दोनों में चाण्डाल ने प्राणघात होने पर भी अहिंसा व्रत को नहीं छोड़ा था, इसलिये उसके व्रत के माहात्म्य से जलदेवता ने जल के मध्य सिंहासन, मणिमय मण्डप, दुन्दुभिबाजों का शब्द तथा साधुकार-अच्छा किया आदि शब्दों का उच्चारण यह सब महिमा की। महाबल राजा ने जब यह समाचार सुना तब भयभीत होकर उसने चाण्डाल का सम्मान किया तथा अपने छत्र के नीचे उसका अभिषेक कराकर उसे स्पर्श करने के योग्य विशिष्ट पुरुष घोषित कर दिया। इस प्रकार अहिंसा अणुव्रत के पालन में यमपाल चांडाल प्रसिद्ध हुआ।
अनंत सागर
श्रावकाचार ( 70 वां दिन)
शुक्रवार, 11 मार्च 2022, घाटोल
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