26
May
तीसरी ढाल
सच्चा सुख और द्विविध मोक्षमार्ग का लक्षण
आतम को हित है सुख, सो सुख आकुलता बिन कहिये ।
आकुलता शिवमाँहि न तातैं, शिव-मग लाग्यो चहिये ॥
सम्यग्दर्शन – ज्ञान – चरन शिवमग सो दुविध विचारो ।
जो सत्यारथरूप सु निश्चय, कारन सो व्यवहारो ॥1।।
अर्थ- आत्मा का हित सुख की प्राप्ति होना है। वह सुख आकुलता मिट जाने पर मिलता है। आकुलता मोक्ष में नहीं है इसलिए मोक्ष के मार्ग में लग जाना चाहिए । सम्यग्दर्शन,सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र इन तीनों की प्राप्ति होना मोक्षमार्ग है। वह दो प्रकार का है – निश्चय मोक्ष मार्ग। जो वास्तविक स्वरूप हैं वह निश्चय मोक्ष मार्ग है और जो निश्चय का कारण है वह व्यवहार मोक्षमार्ग है।[/vc_column_text][/vc_column][/vc_row]
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