11
Jul
छहढाला
दूसरी ढाल
गृहीत मिथ्याज्ञान का लक्षण
एकान्तवाद-दूषित समस्त, विषयादिक पोषक अप्रशस्त।
रागी कुमतिन कृत श्रुताभ्यास, सो है कुबोध बहु देन त्रास।।13।।
अर्थ – जो शास्त्र एकान्त पक्ष से दूषित हैं या जो विषय-वासनाओं के पोषक होने से निन्दनीय हैं तथा रागी-द्वेषी कुबुद्धि गुरुओं द्वारा रचे गये हैं, उन समस्त शास्त्रों का पठन-पाठन (अध्ययन) गृहीत मिथ्याज्ञान है। जीव (आत्मा) के लिए ये अन्त में बहुत दु:खदायी सिद्ध होते हैं। विशेषार्थ-भिन्न-भिन्न धर्मों की अपेक्षा एक वस्तु का विरोध रहित अनेक धर्मात्मक कथन करने वाला सिद्धान्त अनेकान्त है और अनेक धर्मों की अपेक्षा न करके वस्तु का एक ही रूप से कथन करना एकान्त है।
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