भक्तामर स्तोत्र
काव्य – 39
सिंह भय निवारक
भिन्नेभ-कुम्भ-गल-दुज्ज्वल-शोणि ताक्त-
मुक्ताफल-प्रकर-भूषित-भूमि भागः ।
बद्ध-क्रमः क्रमगतं हरिणाधि – पोऽपि,
नाक्रामति क्रम-युगाचल-संश्रितं ते ॥39॥
अन्वयार्थ:भिन्नेभ – विदारण किये गये हाथी के । कुम्भगलद्- मस्तक से झरते हुए । उज्ज्वल – उज्ज्वल वर्ण वाले । शोणिताक्त – रक्त से सने हुए । मुक्ताफल – मोतियों के । प्रकर – समूह से । भूषित – भूषित किया है । भूमिभागः – भूमि भाग को जिसने ऐसा । बद्धक्रम – आक्रमण करने को उद्यत । हरिणापधिः अपि – मृगराज (सिंह) भी । क्रमगतं – पंजों के मध्य में पड़े हुए । ते- (किन्तु) आपके । क्रमयुगाचल – चरण युगल रूप पर्वत के । संश्रितम् – आश्रित पुरुष पर । न आक्रामति – आक्रमण नहीं करता है ।
अर्थ- सिंह,जिसने हाथी का गण्डस्थल विदीर्ण कर,गिरते हुए उज्जवल तथा रक्तमिश्रित गजमुक्ताओं से पृथ्वी तल को विभूषित कर दिया है तथा जो छलांग मारने के लिये तैयार है भी अपने पैरों के पास आये हुए ऎसे पुरुष पर आक्रमण नहीं करता जिसने आपके चरण युगल रुप पर्वत का आश्रय ले रखा है ।
जाप – ऊँ नमो एषु वृत्तेषु वर्द्धमान तव भयहरं वृत्ति वर्णायेषु मंत्राः पुनः स्मर्तव्या अतोना-परमंत्र-निवेदनाय नमः स्वाहा।
ऋद्धि मंत्र – ऊँ ह्रीं णमो वचि- बलीणं झ्रौं झ्रौं नमः स्वाहा ।
अर्घ्य – ऊँ ह्रीं युगादि देवनाम प्रसादत् क्लीं महाबीजाक्षर सहिताय हृदयस्थिताय श्रीवृषभ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
दीप मंत्र – ऊँ ह्रीं युगादि देवनाम प्रसादत् क्लीं महाबीजाक्षर सहिताय हृदयस्थिताय श्रीवृषभ जिनेन्द्राय दीपं समर्पयामि स्वाहा ।
जाप विधि – पीले कपडॆ ,पीली माला,पीला आसन पर बैठकर उत्तर दिक्षा की और मुख कर जाप करना चाहिए ।
कहानी
सिंह पर काबू
भक्तामर में वह शक्ति होती है कि बड़े से बड़े हिंसक जानवर को भी काबू में किया जा सकता है। ऐसी ही कहानी जयपुर के दीवान अमरचंद की है। जयपुर के राजा के दरबार दीवान अमरचंद काम करते थे। अमरचंद जैन धर्म में गहरी श्रद्धा रखते थे और बहुत ही सरल स्वभाव के थे। सारे दरबारी अमरचंद से जलते थे। एक दिन उन्होंने राजा के कान भरते हुए कहा कि अमरचंद कहते हैं कि जैन धर्म में इतनी ताकत है कि उससे कुछ भी किया जा सकता है। वह अहिंसा का पाठ पढ़ाता है और अहिंसा से तो कुछ भी संभव है। राजा ने दरबारियों के कहने पर अमरचंद को शेर के पिंजरे में डालने का हुक्म दिया और कहा कि तुम अहिंसा से शेर पर काबू करो या फिर आज शेर का भोजन बनो। अमरचंद अपने हाथ लड्डुओं से भरा थाल लेकर पिंजरे में उतरे और भक्तामर के 39वें श्लोक का पाठ जोर-जोर से करने लगे। इसके साथ ही उन्होंने शेर को कहा कि आज तुमने बहुत मांसाहार किया है लेकिन शाकाहार भी कुछ कम नहीं है और खासकर लड्डु तो बहुत स्वादिष्ट होते हैं। शेर भी अचानक से लड्डु खाने लगा। अमरचंद का श्लोक का पाठ जारी रहा और चमत्कार हो गया। शेर लड्डु खाकर चुपचाप एक कोने में बैठ गया। राजा यह देखकर हैरान रह गया और उसने तुरंत अमरचंद को पिंजरे से बाहर निकालने को कहा। उस दिन के बाद से राजा भी भक्तामर का नित्य पाठ करने लगा।
शिक्षा : इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि भक्तामर के 39वें श्लोक का पाठ करने से हिंसक शेर को अपने काबू में किया जा सकता है।
चित्र विवरण- क्रुद्ध सिंह,जिसने हाथी के गण्डस्थल को चीरकर भूमि पर रक्त से सने हुए गजमुक्त्काओं का ढरे लगा दिया है, वह भी प्रभुभक्त मानतुंगाचार्य के समक्ष असंगत जाकर शांत हो गया है ।
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