संसार में मनुष्य का कोई सच्चा मित्र है तो वह सम्यग्दर्शन धर्म। उसकी मित्रता निःस्वार्थ है, वह कोई अपेक्षा नहीं रखता है। वह निरन्तर सही राह मार्ग दिखाता है। काल, क्षेत्र आदि को देखकर वह अपने विचार, क्रिया नहीं बदलता है। उसके उपदेश में सदैव कर्म निर्जरा और शुभ कार्य की बात होती है। बुरे काम के लिए वह निषेध करता है। न ही जाति, छोटा, बड़ा देखकर दोस्ती करता है, बल्कि गुणों के आधार पर दोस्ती करता है। जो भी प्राणी सम्यग्दर्शन धर्म से दोस्ती करना चाहता वह कर सकता है, यहां तक कि तिर्यंच, नारकी और देव भी इससे दोस्ती कर सकते हैं। सम्यग्दर्शन की दोस्ती संसार परिभ्रमण को कम कर देती है। इस संसार में अगर कोई हमारा कल्याण कर सकता है तो वह है मात्र सम्यग्दर्शन।
आचार्य समन्तभ्रद स्वामी ने रत्नकरण्ड श्रावकाचार में कहा है कि सम्यग्दर्शन कल्याण रूप है ….
न सम्यक्त्वसमं किञ्चित् त्रैकाल्ये त्रिजगत्यपि।
श्रेयोऽश्रेयश्च मिथ्यात्वसमं नान्यत्तनुभृताम् ॥34॥
अर्थात – प्राणियों के तीनों कालों में और तीनों लोकों में भी सम्यग्दर्शन के समान कल्याणरूप और मिथ्यादर्शन के समान अकल्याणरूप अन्य कुछ भी नहीं है।
भूत, भविष्य और वर्तमान के भेद से तीनों कालों में तथा अधोलोक, मध्यलोक और ऊर्ध्वलोक के भेद से तीनों लोकों में सम्यग्दर्शन के समान प्राणियों का कल्याण करने वाला दूसरा विकल्प नहीं है। इसके रहते हुए गृहस्थ भी मुनि से अधिक उत्कृष्टता को प्राप्त होता है तथा मिथ्यात्व के समान दूसरी वस्तु अकल्याण करने वाली नहीं है, क्योंकि उसके सद्भाव में व्रत और संयम से सम्पन्न मुनि भी गृहस्थ की अपेक्षा अपकृष्टता या हीनता को प्राप्त होता है। सार है कि सम्यगदर्शन ही हमारे जीवन के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करता है।
अनंत सागर
श्रावकाचार ( 40 वां दिन)
बुधवार , 9 फरवरी 2022, बांसवाड़ा
Give a Reply