11
Jul
छहढाला
तीसरी ढाल
मोक्ष का लक्षण, व्यवहार सम्यग्दर्शन
सकल-करमतैं रहित अवस्था, सो शिव, थिर सुखकारी।
इहिविधि जो सरधा तत्त्वन की, सो समकित व्यवहारी।
देव जिनेन्द्र गुरु परिग्रह बिन, धर्म दयाजुत सारो।
येहू मान समकित को कारन, अष्ट अंग-जुत धारो॥ 10।।
अर्थ- सम्पूर्ण (आठों) कर्मो से रहित आत्मा की जो शुद्ध अवस्था होती है उसे मोक्ष कहते हैं, वह स्थिर सुख को देने वाली है । इस प्रकार सातों तत्त्वों का श्रद्धान करना व्यवहार सम्यग्दर्शन है । वीतराग,सर्वज्ञ,हितोपेशी सच्चे देव,अंतरंग-बरिहंग परिग्रह रहित वीतराग गुरु, श्रेष्ठ अहिंसामय जैन धर्म, ये सब सम्यग्दर्शन के कारण हैं । इस सम्यग्दर्शन को आठ अंग सहित धारण करना चाहिए ।
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