11
Jul
छहढाला
तीसरी ढाल
अजीव, पुद्गल, धर्म और अधर्म द्रव्य का लक्षण
चेतनता बिन सो अजीव हैं, पञ्च भेद ताके हैं।
पुद्गल पंच वरन रस गन्ध दो, फरस वसु जाके हैं॥
जिय – पुद्गल को चलन सहाई, धर्म द्रव्य अनरूपी।
तिष्ठत होय अधर्म सहाई, जिन बिनमूर्ति निरूपी॥7।।
अर्थ- जिसमें जानने-देखने की शक्ति नही पाई जाती है उसे अजीव कहते हैं। उसके पांच भेद हैं – 1.पुद्गल 2. धर्म 3.अधर्म 4. आकाश 5. काल । पांच वर्ण,पांच रस,दो गन्ध, आठ स्पर्श जिसमें पाये जाते हैं उसे पुद्गल कहते हैं। जो जीव और पुद्गल को चलने में सहायक है,वह अमूर्तिक धर्मद्रव्य है। जो ठहरते हुए जीव और पुद्गल को ठहरने में सहायक होता है,उसे अधर्म द्रव्य कहते हैं। यह भी अमूर्तिक द्रव्य है।
Please follow and like us:
Give a Reply