धर्म का इतिहास कितना प्राचीन और प्रामाणिक है, इसका पता तीर्थंकर भगवान, शास्त्र और जैन साधुओं से लगता है। जैन साधुओं को समाज चलते-फिरते तीर्थ कहता है पर क्या कभी इसी तीर्थ के संरक्षण की बात सोचता है? आओ….साधु परमेष्ठी के इतिहास को संरक्षित करें। उनके आहार, विहार और साधना में सहयोगी बनकर अपने श्रावक कर्तव्य का निर्वहन करें। इसी कार्य को परिपूर्ण करने के लिए हमने एक संकल्प लिया… ‘णमो लोए सव्वसाहूणं परिवार’ की स्थापना का। क्या आप भी इस संकल्प को लेना चाहेंगे, जिसमें प्रतिपल आप जीवंत परमेष्ठी हेतु समर्पित हों। क्यों न हम एक सी भावना वाले साथ जुड़कर अपने इस कर्तव्य का निर्वहन करें। क्यों न हम लोक के सभी जैनसाधुओं के आगे नतमस्तक हो जिनधर्म की प्रभावना के प्रभावक बनें। मुनि श्री पूज्यसागरजी महाराज के मन में वर्षों से बैठा यह विचार दिनो-दिन बलवती हुआ और 3 जुलाई 2016 को यह दृढ़संकल्प बन गया। उनके इसी संकल्प को पूर्ण करने की पहल है… ‘णमो लोए सव्व साहूणं परिवार’ आप भी इस संकल्प से जुड़ें और कर्तव्य निर्वहन के इस कार्य को अभियान का रूप दें। आओ ‘णमो लोए सव्व साहूणं परिवार’ का हिस्सा बनें।
05
Dec
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