एक बार एक आदमी ने अपने बगीचे में एक तितली के कोकून को देखा। उसने देखा कि उस कोकून में एक छोटा सा छेद बना हुआ है और उसमें से एक छोटी तितली बाहर निकलने की बहुत कोशिश कर रही है। परन्तु बहुत देर तक कोशिश करने के बाद भी वो उस छेद से बाहर नहीं निकल पा रही थी। वह बहुत कोशिश करती रही और फिर शांत हो गई। उस आदमी को लगा जैसे तितली ने हार मान ली इसलिए उस आदमी ने उस तितली की मदद करने के उद्देश्य से एक कैंची उठायी और कोकून के छेद को बड़ा कर दिया। ताकि वह तितली आसानी से बाहर निकल पाए। फिर यही हुआ, तितली बिना किसी संघर्ष के आसानी से बाहर निकल गई। परन्तु उसका शरीर सूजा हुआ था और पंख सूखे हुए थे। उस आदमी को लगा कि वो तितली अपने पंख फैला कर उड़ने लगेगी, परन्तु ऐसा नहीं हुआ बल्कि कुछ समय बाद ही वह मर गई। इसका उसे काफी दुःख हुआ। उस आदमी ने अपने बुजुर्ग को यह सारी बात बताई। बुजुर्ग ने बताया असल में कोकून से निकलने की प्रक्रिया को प्रकृति ने इतना कठिन इसीलिए बनाया है ताकि ऐसा करने से तितली के शरीर में मौजूद तरल पदार्थ उसके पंखों में पहुंच सके और वो छेद से बाहर निकलते ही उड़ पाए तथा जिंदा रह सके। तुमने उस की मदद करके उसकी इस प्राकृतिक प्रक्रिया को तोड़ दिया। जिसके कारण उसका यह हश्र हुआ। यानी वह बाहर निकलने का संघर्ष ही तितिली को ताकत देता है।
सीख – जीवन में संघर्ष ही हमें मजबूती प्रदान करता है।
अनंत सागर
कहानी
(छब्बीसवां भाग)
25 अक्टूबर, 2020, रविवार, लोहारिया
अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज
(शिष्य : आचार्य श्री अनुभव सागर जी)
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