संसार सुख -दुःख का मेला है। प्राणी को इस संसार रूपी मेले में सुख और दुख दोनों के साधन मिलते है। किस साधन को किस दृष्टि से देखना है यह हमें तय करना है। यही दृष्टि हमारा जीवन तय करती है और यह तय करती है कि हमारा भविष्य कैसा होगा। आचार्य कहते हैं कि सुख-दुःख दोनो के साधनों में दृष्टि एक जैसी ही रखनी है। वह दृष्टि सकारात्मक होनी चाहिए। जो भी घटना घटे उसमें यही दृष्टि रखनी चाहिए कि जो भी मेरे साथ हो रहा उसका कारण में हूं, हालांकि इसका निमित्त कोई भी हो सकता है इसलिए किसी के प्रति मुझे राग-द्वेष नही करना है। सब के साथ स्नेह, प्रेम, वात्सलय रखना है। संसार में है तो सुख- दुःख दोनों ही आएंगे। हमारे आचार्य कहते हैं कि रास्ता कैसा भी हो पर दृष्टि सकारात्मक होनी चाहिए। रास्ता सुंदर हो पर दृष्टि सकारात्मक नहीं हो तो उस सुंदर रास्ते मे भी कमी दिख सकती है और रास्ता कांटों भरा हो पर दृष्टि सकारात्मक हो तो उस रास्ते में भी अच्छाई दिखाई दे जाएगी। हमें रास्ते के बजाए अपनी दृष्टि पर ध्यान देना चाहिए। सकारात्मक दृष्टि के साथ ही जीवन में सफलता मिलती है। आचार्य कहते हैं कि संसार में सुख-दुःख दो रास्ते हैं इस पर चलना हमें ही है। इन दोनों रास्तों में दृष्टि सकारात्मक रखो तो सुख-दुःख दोनो में आनंद का अनुभव होगा। इस संसार में मोह के कारण हम अपनी सकारात्मक दृष्टि के स्वभाव को भूल गए है और नकारात्मक दृष्टि के कारण मोह में पड़े हैं। आचार्य पूज्यपाद इष्टोपदेश में कहते हैं कि –
मोहन संवृतं ज्ञानं, स्वभावं लभते न हि।
मत्तरूपुमानपदार्थानां ,यथा मदन-कोडरवै रू।।
अर्थात
मोह से आच्छादित ज्ञान आत्मा के स्वभाव को नहीं जान पाता है। जिस प्रकार मादक को खा लेने से प्रमत्त हुआ मनुष्य पदार्थों को यथार्थ नहीं जान पाता है।
वपुर्गृहं धनं दारारू, पुत्रा मित्राणि शत्रवरू
सर्वथान्यस्वभावानि, मूढरू स्वानि प्रपद्यते
अर्थात
यह शरीर, घर, धन, पत्नी, पुत्र, मित्र एवं शत्रु सब प्रकार से आत्मभिन्न वाले हैं परंतु मूर्ख जीव इनको ही अपनी आत्मा समझते हैं।
अब कुछ करना है तो बस दृष्टि बदलो। पूरा संसार के प्रति तुम्हारे अंदर प्रेम, वात्सलय आ जाएगा। पूरी दुनिया तुम्हारी मित्र हो जाएगी।
अनंत सागर
अंतर्भाव
( सत्ताईसवां भाग)
30 अक्टूबर, 2020, शुक्रवार, लोहारिया
अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज
(शिष्य : आचार्य श्री अनुभव सागर जी)
Give a Reply