जब आप हवाई जहाज की यात्रा करते हैं तो वहां पर कहा जाता है कि हवा के दबाव के कारण ऑक्सीजन की आवश्यकता होगी तो ऊपर से ऑक्सीजन मास्क अपने आप नीचे आ जाएगा। कहा जाता है कि पहले आप अपना मास्क लगाएं फिर दूसरों की सहायता करें। आग लगी हो तो आप क्या करोगे यही ना कि पहले अपने आप को बचाओगे फिर दूसरों को बचाओगे। यही होना भी चाहिए। यही सब करते भी हैं। अध्यात्म से सच्चा मित्र दुनिया में नहीं है।
पर यही बात जब धर्म कहता है तो हमें समझ नही आती है। धार्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि पहले अपनी बुरी आदतों का और बुरी आदतों के कारणों का त्याग करो, नकारात्मक सोचना बंद करो, फिर जीवन में यह बुरी आदतें न आएं उसके लिए धीरे धीरे सकारात्मक सोच के साथ हर तरह की आदतों को छोड़ने की ओर अपने कदम बढ़ाओ और उस अवस्था पर पहुंच जाओ जहां पर तुम्हें सब अपना माने पर तुम अपने आप के अलावा किसी को कुछ नहीं मानो। धर्म की भाषा मे कहें तो पहले श्रावक बनकर पाप का त्याग करो और फिर साधु बनकर पुण्य के साधनों को भी धीरे-धीरे छोड़ते जाओ।
आप देखो श्रावक पूजन, पाठ, अभिषेक आदि करते हैं। यह सब अच्छी आदत है पर साधुओं को यह सब करते नही देखा क्यों कि साधु इनको छोड़ चुके है। उन्हें मात्र आत्म कल्याण के बारे में सोचना है। साधु भी धीरे धीरे उस अवस्था तक पहुंच जाते हैं जहां कुछ कहने की आवश्यकता नही होती। जहां पर पहुँचने के बाद साधु की बात का अनुभव किया जाता है। स्मरण किया जाता है। साधु दूसरे के लिए आदर्श बन जाते हैं। दूसरों के दिल पर राज करते हैं। इस अवस्था का नाम है परमात्मा।
तो फिर आध्यात्म से दूर क्यों भागते हो… क्योंकि हमारे मानस में यह बैठ चुका है कि आध्यात्म की शुरुआत मुनि बनने से होती है जब कि मुनि बनने वाली अवस्था तो अंतिम अवस्था है। सच तो यह है कि आध्यात्म की शुरुआत जम्म के 45 दिन बाद से ही हो जाती है। जिस दिन आप पहली बार मन्दिर जाते हैं और मद्य, मांस, मधु आदि का त्याग करवाया जाता है। अब इसे मानस में बैठा लो तो तुम्हे खुद को अनुभव होगा कि अध्यात्म से सच्चा मित्र दुनिया में नहीं है।
अनंत सागर
अंतर्भाव
(अट्ठाईसवां भाग)
6 नवम्बर, 2020, शुक्रवार, लोहारिया
अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज
(शिष्य : आचार्य श्री अनुभव सागर जी)
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