निर्मलभाव को धारण करने वाला ही अच्छे कर्म कर सकता है। अच्छे कर्म से मतलब आपके कार्य से किसी को कष्ट नही पहुंचे। पद्मपुराण के पर्व 31 में दशरथ और राम के बीच वार्ता का एक प्रसंग निर्मल भाव से किए गए कर्म का महत्व समझाता है।
प्रसंग कुछ ऐसा है:
दशरथ ने राम को कहा कि मुझे वचनबद्धता के कारण राज्य भरत को देना होगा, पर मर्यादा यह कहती है कि समर्थवान बड़े पुत्र के रहते छोटे पुत्र को राज्य नही दिया जा सकता है। मैं भरत को राज्य देता हूं तो तुम लक्ष्मण के साथ कहाँ जाओगे। तुम पंडित हो, बताने में सक्षम हो, तो तुम्हीं बताओ कि मैं इस भारी चिंता से कैसे बाहर निकलूं? मुझे क्या करना चाहिए? राम जिसकी नजर पिता के चरणों पर थी, वह बोला पिताजी आप अपने सत्यव्रत का पालन करो और हमारी चिंता छोड़ो। अगर आप अपकीर्ति को प्राप्त होते हैं तो मुझे इन्द्र के समान लक्ष्मी भी कोई सुख नहीं दे सकेगी। धर्म कहता है पुत्र को वही काम करना चाहिए जिससे माता-पिता को किंचित भी दुःख, शोक प्राप्त ना हो। जो पिता को पवित्र करे और शोक से रहित करे वही सुपुत्र है, ऐसा विद्वान कहते हैं। राम ने निर्मल भाव के साथ कर्म का फल समझकर स्वयं वन जाने का निर्णय किया और वह माता-पिता के चरणों का स्पर्शकर वन की और गमनकर गए।
अनंतसागर
कर्म सिद्धांत
तेतालीसवां भाग
23 फरवरी 2021, मंगलवार, बांसवाड़ा
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