भगवान आदिनाथ ने सामाजिक व्यवस्था के संचालन के लिए नगर, गांव, मकान आदि बनाने और उन्हें बसाने का उपदेश दिया था, जिससे प्रजा अपना जीवन सुख, शांति, समृद्धि से जी सके। इसी के साथ उन्होंने वर्ण व्यवस्था का उपदेश भी दिया। भगवान आदिनाथ ने प्रजा को कर्म के अनुसार तीन वर्ण में विभाजित किया और उसके बाद भरत चक्रवर्ती ने एक वर्ण की स्थापना की। इसका वर्णन पद्मपुराण के पर्व 4, 5 में आया है।
भगवान आदिनाथ ने वर्ण व्यवस्था की स्थापना प्रजा के कार्य के अनुसार की थी। जो लोग विपत्ति के समय मनुष्यों की रक्षा करने के नियुक्त किए गए थे वह क्षत्रिय कहलाए। वाणिज्य, खेती, गोरक्षा आदि के व्यापार में जो लगे थे वे वैश्य कहलाए। जो निम्नस्तर का कार्य करते थे तथा धार्मिक शास्त्रों से दूर भागते थे वह शूद्र कहलाए। इसके बाद भरत चक्रवर्ती ने पूजा, पाठ करने वाले और यज्ञोपवीत (जनेऊ) धारण करने वाले ब्राह्मण वर्ण की स्थापना की। इस प्रकार से जैन धर्म में चार वर्ण की स्थापना उल्लेख मिलता है।
अनंत सागर
पाठशाला
पैंतालीसवां भाग
6 मार्च 2021, शनिवार, भीलूड़ा (राजस्थान)
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