12
Apr
छहढाला
पहली ढाल
ग्रन्थ रचना का उद्देश्य व जीव की चाह
निगोद के दु:ख व निगोद से निकलकर प्राप्त पर्यायें
एक श्वांस में अठदस बार, जन्म्यो मारयो भरयो दु:ख भार।
निकसि भूमि-जल-पावक भयो,पवन-प्रत्येक वनस्पति थयो॥5।।
अर्थ – इस जीव ने निगोद में एक श्वास मात्र काल में अठारह बार जन्म लिया और मरण को प्राप्त किया। इस प्रकार अनेक दु:खों का भार उसने सहा है। निगोद से निकलकर यह जीव पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और प्रत्येक वनस्पतिकायिक जीव हुआ।
विशेषार्थ – निरोग मनुष्य की नाड़ी की एक फड़कन एक श्वाँस कहलाती है। जिस वनस्पति में एक शरीर के अनेक जीव स्वामी होते हैं, वह साधारण वनस्पति है तथा जिस वनस्पति में एक शरीर का एक ही जीव स्वामी होता है, उसे प्रत्येक वनस्पति कहते हैं।[/vc_column_text][/vc_column][/vc_row]
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