कोरोना काल में मनुष्य शारीरिक,आर्थिक और कोई मानसिक रोग से रोगी हो रहा है। शारीरिक रोग के लिए डॉक्टर के पास जाते हैं तो डॉक्टर दवा देने के बाद कहता है कि हम तो कोशिश कर सकते हैं बाकी तो ईश्वर के हाथ में है । आर्थिक रोग का मतलब धन की कमी उसके लिए हम दुकान,नौकरी करते हैं और जब वहां पर भी कुछ परेशानी आती है तो हम ईश्वर को याद करते हैं या कोई बड़ा व्यक्ति हमें कहता है ईश्वर पर भरोसा रखो और मानसिक रोग जब हो जाता है तो मुख से यही निकलता है कि बुरे कर्म का फल भोग रहा है। पता नहीं क्या बुरे कर्म किए थे जो यह सब मेरे साथ हो रहा है।
अब देखो कोई भी दुःख हो हम ईश्वर को याद तो करते ही हैं फिर चाहे रोगी हो या रोग का इलाज करने वाला। ईश्वर और उसकी वाणी को समझने के लिए ज्ञान की आवश्यकता होती है और ज्ञान के लिए स्वाध्याय की आवश्यकता है। जीवन में तुम कितने भी व्यस्त हो पर स्वाध्याय करने का नियम बना लो कि मैं प्रतिदिन इतनी देर स्वाध्याय अवश्य करूंगा। स्वाध्याय से असंख्यात गुणा अधिक कर्म की निर्जरा होती है । ज्ञान के साथ किया धर्म और सकारात्मक कार्य अधिक कर्म की निर्जरा करता है । स्वाध्याय की आदत भव-भव में काम आती है। जैसे शरीर की स्वच्छता पीली मिट्टी ,साबुन आदि से की जाती है, वैसे ही मन की निर्मलता स्वाध्याय से ही सम्भव है और उसके बिना जीवन में निरोगता संभव नहीं है। तो आपने भी स्वाध्याय करने का संकल्प किया है तो हमें 9460155006 पर स्वाध्याय लिख कर व्हाट्सएप करें ।
अनंत सागर
अन्तर्मुखी के दिल की बात (पचपनवां भाग)
19 अप्रैल,सोमवार 2021
भीलूड़ा (राज.)
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