21
May
दूसरी ढाल
कुदेव- कुधर्म का लक्षण एवं गृहीत मिथ्याज्ञान के कथन की प्रतिज्ञा
ते हैं कुदेव, तिनकी जु सेव, शठ करत न तिन भव भ्रमण छेव।
रागादि भाव हिंसा समेत, दर्वित त्रस थावर मरण खेत।।11।।
जे क्रिया तिन्हें जानहु कुधर्म, तिन सरधैं जीव लहै अशर्म।
यावूँ गृहीत मिथ्यात्व जान, अब सुन गृहीत जो है अज्ञान।।12।।
अर्थ – जो मुर्ख उनकी (कुदेव की ) सेवा करते हैं वे संसार से पार नहीं हो सकते हैं । राग-द्वेष आदि परिणाम भाविंहसा है, त्रस और स्थावर जीवों का घात होना द्रव्यहिंसा है, ये दोनों क्रियाएँ कुधर्म हैं। इस प्रकार कुगुरु, कुदेव और कुधर्म में जो जीव श्रद्धान करता है, वह सर्वदा दु:ख ही प्राप्त करता है, अत: इनको गृहीत मिथ्यात्व (मिथ्यादर्शन) समझो।
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