कर्म बड़े विचित होते हैं। देखो, जिस त्रिलोकमण्डल हाथी को राम और लक्ष्मण अयोध्या में वश में कर सके, वह राजा भरत को देखकर शांत क्यों हो गया? इसका उत्तर पद्मपुराण पर्व 85 में मिलता है। आओ-उत्तर जानते हैं।
भगवान आदिनाथ के साथ सूर्योदय और चन्द्रोदय नाम के राजाओं ने दीक्षाधारण की, पर दोनों भूख-प्यास आदि वेदना से मुनि दीक्षा छोड़ मरीची की शरण में चले गए। वहां मिथ्याधर्म का पालन करने लगे। चन्द्रोदय राजा मरकर कुलंकर राजकुमार हुआ और सूर्योदय राजा श्रुतिरत नाम से प्रसिद्ध हुआ जो बड़ा विद्वान था। दोनों तिर्यंच पर्याय और देव पर्याय, मनुष्य पर्याय और मुनि भी हुए पर कर्मों से दुःखों को भोगते रहे। अंत में सूर्योदय का जीव तो जंगल में बलशाली हाथी हुआ जिसे रावण लंका ले गया और वहां से राम के साथ यहां लाया गया। चन्द्रोदय नामक जो जीव था, वह मरकर भरत हुआ। हाथी जैसे ही भरत के सामने आया तो उसे पूर्व भव का स्मरण हो गया और वह शांति को प्राप्त हुआ।
87वें पर्व में लिखा है कि त्रिलोमण्डल हाथी ने नुनिराज से अणुव्रत लेकर चार वर्ष तक उग्र तप किया। धीरे- धीरे भोजन का त्यागकर संल्लेखना के साथ वह मरण को प्राप्त हुआ और स्वर्ग में देव हुआ। कर्मों का फल देखो, मनुष्य पर्याय में अपना उद्धार नहीं कर सका और हाथी ने अणुव्रत धारणकर अपने कर्मों को सुधार लिया।
अनंत सागर
कर्म सिद्धांत
25 मई 2021, मंगलवार
भीलूड़ा (राज.)
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