आचार्य शांतिसागर लोगों के आराधना करने के तरीके से दुखी थीे। उन्होंने देखा कि लोगों में कुदेव, राग-द्वेष, मिथ्या देवों की भक्ति विद्यमान है। लोग जिनेंद्र भगवान को भूल चुके हैं और संसार को डुबोने वालों की आराधना में लीन हैं। ऐसे में आचार्य शांतिसागर ने समाज के इस मिथ्यात्व रोग दूर करने का बीड़ा उठाया। हालांकि यह कार्य नदी की धारा मोड़ने जैसा मुश्किल था। लोग जो चीज बचपन से करते आ रहे थे, वह उसे अचानक कैसे छोड़ सकते थे लेकिन शांतिसागर महाराज ने हिम्मत नहीं हारी। उनके सामने जो भी कुदेव सेवी आता था, वह उनके सानिध्य में आने की वजह से मिथ्यात्व का त्याग कर व्यवहार सम्यक्त्व को धारण कर लेता था। धीरे-धीरे करके हजारों घरों में उन्होंने जिनेंद्र भक्ति की ज्योति जगा दी थी। इधर उनके मुख से शब्द निकलते, उधर श्रावक और भक्त जिन धर्म की राह पर चल पड़ते थे। सभी पापों में प्रमुख मिथ्यात्व का प्रचार उन्होंने तुरंत बंद करवाया और भोले और भूले जैन बंधुओं की मुक्ति का मंगलमय सुधार कार्य शुरू किया। यह सुधार था पाप प्रवृत्तियों का परित्याग कर संयमशील हो सदाचार के पथ पर चलना। जीव के परमार्थ कल्याण का उपदेश देकर मिथ्या मार्ग से बचाने वाले आचार्य शांतिसागर जैसे सत्पुररुओं के दर्शन आज दुर्लभ हैं।
27
May
Please follow and like us:
Give a Reply