आचार्य श्री शांतिसागर महाराज की णमोकर मंत्र पर बहुत ही श्रद्धा और विश्वास था। उन्होंने णमोकार मंत्र के बल पर मिथ्या मान्यताओं को दूर किया। जैनवाड़ी चातुर्मास के समय गांव में एक व्यक्ति सर्प का जहर उतारता था। उस गांव में बहुत सर्प थे। इसलिए आए दिन किसी न किसी किसी इंसान या बैल आदि जानवरों को सर्प काट लेता था। मंत्र से सर्प का जहर उतारने वाला मिथ्या मंत्रों का उपयोग करता था। इस कारण उस गांव के जैन समाज में भी मिथ्यात्व का बहुत बोल- बाला हो गया था। तब महाराज श्री ने उस व्यक्ति को बुलाया और कहा कि तुम मंत्रों से सर्प का जहर उतारते हो, यह अच्छी बात है लेकिन एक बात हमारी सुनो। तुम दो महीने का नियम लो कि आज से केवल णमोकार मंत्र के माध्यम से सर्प का जहर उतारोगे। महाराज श्री ने उसे विधि भी बता दी कि किस प्रकार से करना है। अगर इससे नहीं उतरता है तो तुम इस मंत्र को छोड़ कर अपने पुराने मिथ्या मंत्र को ही काम में लेना। इस बीच एक व्यक्ति उस व्यक्ति के पास कर बोला कि मेरे बैल को सर्प ने काट लिया है तो वह बैल के पास गया और णमोकार मंत्र के माध्यम से बैल का जहर उतारने लगा। देखते ही देखते णमोकार मंत्र के प्रभाव से सर्प का सारा जहर उतर गया। वह जहर उतारने वाला व्यक्ति आया और उसने नियम लिया कि आज के बाद वह मिथ्या मंत्रों और विधि का उपयोग नहीं करके केवल णमोकार मंत्र के द्वारा ही सर्प का जहर उतारेगा। जैन धर्म विद्यानुवाद नाम का दसवां पूर्व है। उसमें मंत्रों का वर्णन मिला है। इसीलिए आचार्य की मंत्रों पर अगाध श्रद्धा थी।
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May
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