आचार्य श्री शांतिसागर महाराज ने मंदिर के पैसों के बारे में बड़ी बात कही थी । महाराज श्री ने कहा था कि मंदिर की संपत्ति का उपयोग गरीबों के लिए, छात्रवृत्ति देने में, पाठशाला, स्कूल के काम में नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा था कि जो भी मंदिर की संपत्ति का उपयोग करेगा, उसका अहित होगा। महाराज श्री ने कहा था कि मंदिर का पैसा मंदिरों और धर्मस्थलों के जीर्णोद्धार में उपयोग करना चाहिए, जिससे धर्म का रक्षण होगा। वर्तमान में जो लोग लौकिक व्यवहार, लोकहित के कारण मंदिर का पैसा स्कूल, पाठशाला आदि में काम में लेते हैं, वह आगम के अनुसार ठीक नहीं है। उन्होंने कहा था कि ऐसे लोगों का अहित होने पर उन्हें उनके दुखों से न तो पंचायतों का प्रस्ताव बचा सकेगा और न ही कुछ पंडितों या दूसरों का दिया गया प्रमाण पत्र ही काम आएगा। जैनधर्म में कर्मों के भोगने में कोई सिफारिश काम नहीं आती है। इसलिए ऐसे लोग सोचें कि जरा सी वाहवाही उठाने के चक्कर में मंदिर की संपत्ति को ऐसे कामों में खर्च करने से उन्हें कितनी बड़ी विपत्ति भोगनी पड़ेगी क्योंकि वह परमार्थ की वस्तु है और जैसे बाहर से लगने वाली औषधि कोई खा जाए, तो वह रोग समाप्त करने की बजाय रोगी को ही समाप्त कर देती है, इसी तरह से देव द्रव्य का मनमाना उपयोग विपत्ति का कारण होगा। इसलिए सभी लोगों को लोकवाणी के स्थान पर जिनेंद्र की वाणी को मानना चाहिए।
02
Jun
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