तीसरी ढाल
मद,छह अनायतन व तीन मूढ़ता
तप को मद न मद जु प्रभुता को, करै न सो निज जानै।
मद धारै तो यही दोष वसु, समकित को मल ठानै।।
कुगुरु-कुदेव-कुवृष-सेवक की, नहिं प्रशंस उचरै है।
जिनमुनि जिनश्रुत बिन कुगुरादिक, तिन्हें न नमन करै है।।14।।
अर्थ : 7.अपने व्रतोपवास आदि तप का घमण्ड करना तप मद है । 8. अपनी आज्ञा मान्यता आदि का घमण्ड करना प्रभुतामद है ।जो इन्हें नही करता है । वह अपनी आत्मा को जानता है। मद करने से यही आठ दोष सम्यग्दर्शन को मिला करते हैं ।
सम्यग्दृष्टि जीव कुगुरु,कुदेव,कुधर्म,कुगुरु सेवक,कुदेव सेवक और कुधर्म सेवक की प्रशंसा नही करता है यह छः अनायतन है । जिनेन्द्र देव,जैन मुनि,जैन शास्त्र इनके सिवाय कुगुरु आदि को नमस्कार भी नहीं करता है । यदि करता है, तो उसके सम्यक्त्व में मूढ़ता नामक दोष लगता है।
विशेष: सम्यक्त्व के नाशक कुदेवादि की प्रशंसा करना अनायतन कहलाता है । धर्म और सम्यक्त्व में दोषजनक अविवेकीपन के कार्य को मूढ़ता कहते हैं ।[/vc_column_text][/vc_column][/vc_row]
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