तीसरी ढाल
सम्यग्दर्शन का महत्व
दोषरहित गुणसहित सुधी जे, सम्यक्दरश सजे हैं।
चरितमोहवश लेश न संजम, पै सुरनाथ जजे हैं।।
गेही पै गृह में न रचै ज्यों, जलतैं भिन्न कमल है।
नगरनारि को प्यार यथा, कादे में हेम अमल है।।15।।
अर्थ – जो बुद्धिमान 25 दोषों से रहित और 8 गुणों से सहित ऐसे सम्यग्दर्शन से जो बुद्धिमान शोभायमान है, वह यद्यपि अप्रत्याख्यानावरण चारित्र मोहनीयकर्म के उदय से विंचित् भी व्रतादि नहीं धारण कर सका है, तो भी उसे इन्द्र तक पूजते हैं। यद्यपि वह गृहस्थ है, फिर भी गृह-कुटुम्बादि में आसक्त नहीं है। जैसे-कमल जल में रहते हुए भी उससे भिन्न है, वैसे ही वेश्या के प्यार जैसा केवल दिखाऊ प्रेम उसका गृह-कुटुम्बादि पर है। अथवा जैसे कीचड़ में पड़ा सोना यद्यपि ऊपर से कीचड़ में सना हुआ दिखाई देता है, किन्तु वास्तव में वह निर्मल है। इसी प्रकार सम्यग्दृष्टि की अवास्तविक आसक्ति गृहकुटुम्बादि पर पदार्थों पर रहती है, परन्तु वास्तव में उसका अन्तर निज आत्म निधि की ओर दृष्टि लगाए रहता है।[/vc_column_text][/vc_column][/vc_row]
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