तृतीय ढाल सारांश
आत्मा का हित, सुख है। वह सुख निराकुलता में है और वह निराकुलता मोक्ष में है, इसलिए तृतीय ढाल में मोक्षमार्ग का सांगोपांग सुविवेचन किया गया है। मोक्षप्राप्ति का उपाय रत्नत्रय है और वह निश्चय एवं व्यवहार के भेद से दो प्रकार का है। व्यवहार रत्नत्रय निश्चय रत्नत्रय का कारण है और निश्चय रत्नत्रय वह है जो मात्र अन्तर्मुहूर्त में मोक्ष की प्राप्ति करा दे।
मोक्षमार्ग में प्रवर्तन कराने वाले व्यवहार सम्यक्त्व के विषयभूत सातों तत्त्वों का कथन, अजीव तत्त्व के अन्तर्गत षड् द्रव्यों के लक्षण, आठ अंग, आठ मद और छ: अनायतनों के लक्षण तथा सम्यक्त्व उत्पत्ति के कारण जिनेन्द्र देव, परिग्रह बिन गुरु और दयायुत धर्म आदि को कह कर उसका प्रयोजन समझाया गया है कि बिना जाने दोषों का त्याग और गुणों का ग्रहण कैसे हो सकता है। अन्त में मनुष्य पर्याय को सफल बनाने हेतु सम्यक्त्व धारण करने की विशेष प्रेरणा दी गई है।[/vc_column_text][/vc_column][/vc_row]
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