भक्तामर स्तोत्र
परिचय
भक्तामर स्त्रोत्र का महत्त्व एवं विशेषताएं
आचार्य मानतुंग स्वामी द्वारा रचित भक्तामर स्तोत्र संसार के मनुष्यों के लिए एक अमृत के समान है। श्रद्धा, आस्था के साथ इसकी आराधाना करने से शारीरिक रोग, मानसिक रोग और आर्थिक संकट दूर होते है। इस काव्य की रचना धार नगरी में राजा भोज और कवि कालिदास द्वारा जब आचार्य मानतुंग पर 12 वीं में उपसर्ग किया गया। आचार्य मानतुंगजी को जब राजा भोज ने जेल में बंद करवा दिया था, तब उन्होंने भक्तामर स्तोत्र की रचना की तथा 48 श्लोकों पर 48 ताले टूट गए। उस समय आत्मध्यान में लीन होते हुए भगवान आदिनाथ स्तुति करते हुए भक्तामर स्तोत्र की रचना की, इसलिए इसे आदिनाथ स्तोत्र भी कहा जाता है। इसके प्रत्येक काव्य में 56 अक्षर है कुल स्तोत्र में 2688 अक्षर है। वर्तमान में लगभग इस काव्य के 130 अनुवाद हो चुके है। इस काव्य की रचना बसंततिलका छंद में की गई है।
भक्तामर स्त्रोत्र के काव्यों की आराधना हवन, जाप, रिद्धि मंत्र और अर्घ्य के साथ करना चाहिए। बिना गुरु के दिए यह मंत्र सिद्ध नही होता है नही इसका फल मिलता है। काव्यों की आराधना शुरू करने से पहले गुरु के पास जाकर किसी एक खाने की वस्तु का त्याग कर इसकी आराधना शुरू करना चाहिए।
भक्तामर स्तोत्र का प्रसिद्ध तथा सर्वसिद्धिदायक महामंत्र है |
‘ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं अर्हं श्री वृषभनाथतीर्थंकराय् नम:’
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