भक्तामर स्तोत्र
काव्य – 11
इच्छित-आकर्षक
दृष्ट्वा भवंत-मनिमेष-विलोकनीयं,
नान्यत्र तोष-मुपयाति जनस्य चक्षुः ।
पीत्वा पयः शशिकर-द्युति-दुग्ध-सिन्धो,
क्षारं जलं जलनिधे रसितुँ क इच्छेत् ॥11॥
अन्वयार्थ – अनिमेष – अपलक टुष्टि से । विलोकनीयम् – देखने के योग । भवन्तम् – आपको । दृष्ट्वा – देखकर । जनस्य – मनुष्य । चक्षु: – आँख । अन्यत्र – और कहीं पर । तोषम् – संतोष को । न उपयाति – नहीं पाती है । शशिकरद्युति – चन्द्र किरणों के समान कांति वाले । दुग्ध सिन्धो: – क्षीरसागर के । पय: – जल को । पीत्वा – पीकर । क: – कौन मनुष्य । जलनिधे: – लवण समुद्र के । क्षारम् – खारे । जलम् – जल को । अशितुम् – पीने के लिए । इच्छेत् – इच्चा करेगा ? कोई भी नहीं ।
अर्थ- हे अनिमेष दर्शनीय प्रभो ! आपके दर्शन के पश्चात मनुष्यों के नेत्र अन्यत्र संतोष को प्राप्त नहीं होते । चन्द्रकीर्ति के समान निर्मल क्षीरसमुद्र के जल को पीकर कौन पुरुष समुद्र के खारे पानी को पीना चाहेगा ? अर्थात कोई नहीं ।
मंत्र जाप – ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं श्राँ श्रीं कुमति निवारिण्यै महामायायै नम: स्वाहा
ऋद्धि जाप – ऊँ ह्रीं णमो पत्तेय बुद्धीणं झ्रौं झ्रौं नमः स्वाहा
अर्घ्य- ऊँ ह्रीं सकल तुष्टि पुष्टि कराय क्लीं महाबीजाक्षर सहिताय हृदयस्थिताय श्रीवृषभनाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
दीप मंत्र – ऊँ ह्रीं सकल तुष्टि पुष्टि कराय क्लीं महाबीजाक्षरसहिताय हृदयस्थिताय श्रीवृषभनाथ जिनेन्द्राय दीपं समर्पयामि स्वाहा ।
जाप विधि – सफेद वस्त्र पहनकर मन्दिर में पूजन करने के बाद एकांत स्थान में बैठकर सफेद आसन पर बैठकर सफेद माला या लाल रंग की माला से 21 दिन तक प्रतिदिन काव्य , ऋद्धि मंत्र तथा जाप की 108 बार आराधना करते हुए कुन्दरु की धूप क्षेपण करें ।
कहानी –
और मीठा हो गया जल
भक्तामर स्त्रोत में इतनी शक्ति है कि उसकी महिमा से खारा जल भी मीठा हो जाता है। वैज्ञानिक भले ही इसे न मानें लेकिन यह बात पूरी तरह से सत्य है। एक बार की बात है कि रत्नावती के राजा रुद्रसेन ने अपने पुत्र तुरंग कुमार के मनोरंजन के लिए एक बहुत बड़ा उद्यान बनवाया। तुरंग कुमार हर रोज भक्तामर स्त्रोत के 11वें श्लोक का अध्ययन पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ करता था। एक दिन उसने उद्यान के बीचो-बीच एक बड़ा सा सरोवर बनाने की सोची। उसे खोदा गया तो पानी तो बहुत निकला लेकिन वह खारा था। सभी को इससे बड़ी निराशा हुई। राजा ने अनेक प्रयत्न किए लेकिन खारा पानी मीठा न हुआ। एक दिन राजा की मुलाकात जैन मुनि चंद्रकीर्ति जी से हुई। तो मुनि श्री ने राजा से पांच कलशों में जल भरकर जिनेंद्र भगवान का अभिषेक कर उसे खारे पानी से भोजन बनाकर दिगंबर साधु को आहार कराने को कहा। इसके साथ ही भक्तामर स्त्रोत के 11वें श्लोक का पाठ होते रहना चाहिए। युवराज तुरंगकुमार ने सारी क्रियाएं संपन्न कीं और चमत्कार हो गया कि सरोवर का खारा पानी एकदम मीठा हो गया।
शिक्षा : इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि भक्तामर के 11वें श्लोक का पाठ पूरी भक्ति से करने से खारा पानी भी मीठा हो जाता है।
चित्र विवरण- ब्रह्मा अथवा विष्णु को देखकर संतुष्ट न होने वाला भक्त भगवान के सुन्दर रुप को अपलक दृष्टि से देख रहा है । क्षीर समुद्र के मधुर जल का जिसने स्वाद चखा है,वह लवण समुद्र के जल को पीने में असमर्थ है ।[/vc_column_text][/vc_column][/vc_row]
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