पर्युषण पर्व विशेष – तीसरा दिन – उत्तम मार्दव धर्म
जीवन में हमेशा प्रसन्नतारूपी रथ पर सवार हों, खुशियों का दामन ना छोडें। इसके लिए दशलक्षण धर्म का तीसरा कदम यानी उत्तम आर्जव धर्म अपनाना अत्यंत आवश्यक है। हमारे आचार्यों ने मन, वचन और कार्य से सात्विक व्यक्ति के आचारण को आर्जव धर्म माना है। जब मनुष्य का मन, वचन और काय किसी एक कार्य में एक साथ लग जाये तो समझ लेना चाहिए कि उसके जीवन में आर्जव धर्म का प्रवेश हो गया है। समस्त शुभ-अशुभ कर्म का संबंध भी मन, वचन और काय ही होते हैं। जब व्यक्ति मन, वचन और काय को शुभ कार्य में लगाता है तो सुख, शांति और समृद्धि का अनुभव करता है, वहीं जब अशुभ कार्य में मन लगाता है तो दुख, क्लेश का अनुभव करता हुआ मानसिक संतुलन खो बैठता है। इससे भी कहीं अधिक जब शुभ-अशुभ कार्य को छोड स्वयं मे स्थिर हो जाता है तो वह परमात्मा बन जाता है। आर्जव धर्म के अभाव में ही व्यक्ति मानसिक रोगों से घिरता है। सही मायने में वर्तमान में जीवने वाला व्यक्ति ही आर्जव धर्म को स्पर्श कर सकता है।
तीसरा दिन
उत्तम आर्जव धर्म के जाप
ऊँ ह्रीं उत्तम आर्जवधर्मांगाय नम:
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