पर्युषण पर्व विशेष – आठवां दिन – उत्तम त्याग धर्म
दशलक्षण धर्म का आठवां कदम ‘उत्तम त्याग धर्म’। यह कदम व्यक्ति के पूर्ण त्याग या मर्यादित रहने का उपदेश देता है। सही मायने में त्याग के बिना कोई भी धर्म जीवित नहीं रह सकता। धर्म तथा आत्मा को जीवित रखने के लिए त्याग नितांत जरूरी है। समस्त जड़ वस्तु का त्याग करने वाला ही मुक्ति को प्राप्त कर पाता है। धर्म के साथ त्याग ही ‘उत्तम त्याग’ है और पुण्य का कारण भी। जर-जोरू-जमीन को मन, वचन और काय के साथ त्याग करना ही धर्म है नहीं तो मात्र त्याग है। इन तीनों का उपयोग धर्म कार्य में किया जाये तो संसार मे सुख, शांति और समृद्धि के साथ मोक्ष मिलती है। जर (संपत्ति) का उपयोग अध्यात्म की उन्नति के लिए मंदिर बनवायें और व्यक्तियों के अंदर वात्सल्य और उपकार की भावना और राष्ट्र विकास के लिए अस्पताल, स्कूल और व्यक्ति में मानवता जाग्रत करने के लिए करें। जोरू (स्त्री) को भोग का नहीं, धर्म का साधन मानें। भोग का साधन मानने वालों के लिए वह काली, दुर्गा है और धर्म का साधन मानने वालों के लिए सरस्वती, लक्ष्मी है। जमीन का उपयोग मन्दिर, साधना केंद्र, अनाथों के लिए घर और जीवनयापन के लिए खेती के उपयोग में करें तभी भगवान आदिनाथ का कृषि कर्म पूरा होगा।
आठवां दिन
उत्तम त्याग धर्म के जाप
ऊँ ह्रीं उत्तम त्यागधर्मांगाय नम:
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