मुनि पूज्य सागर की डायरी से
मौन साधना का 48वां दिन। इंसान जब भविष्य की सोचता है, भूत का स्मरण करता है और वर्तमान के बारे में नहीं सोचता है तो उसका जीवन उलझ जाता है। विवादों की जड़ यही से फैलती है। पुरानी बातों, नई बातों में उलझे रहेंगे तो वर्तमान की परिस्थिति से कैसे लड़ पाएंगे? आज यही हो रहा है। व्यक्ति,परिवार,समाज सबके सब पुरानी और आने वाली बातों में उलझे हुए हैं, इसलिए वर्तमान की परिस्थिति से लड़ ही नहीं पाते हैं।
जब एक स्त्री की शादी होती है तो वह यही सोचने लगती है कि उसक अच्छा घर हो, वह मां बन पाए, बच्चा जब पढ़ता है तो वह यह सोचने लग जाती है कि उसे अच्छी नौकरी मिलेगी कि नहीं। व्यापारी यह सोचता है किस वस्तु का भाव बढ़ने वाला है, उसी को अधिक खरीद लूं। कोई यह सोचता है कि कहां मैंने यह माल खरीद लिया, यह खरीद लेता तो आज इतना कमा लेता। कहां मैंने यह पढ़ाई कर ली और कुछ करता तो कुछ तो काम मिल जाता। कहां मेरी शादी हो गई और कहीं करती तो कितने मजे से रहती।
यह सब कल्पनाएं हैं। ना जाने क्यों इंसान इन कल्पनाओं में पड़कर अपने वर्तमान के कीमती समय को बर्बाद कर रहा है। जो चला गया, वह आने वाला नहीं और जिसके बारे में सोच रहे हैं, वह मिलेगा या नहीं उसका पता नहीं है। और जो है उस पर ध्यान, समय ही नहीं दे रहे हैं। आज जो विवाद सुलझ नहीं रहे हैं, इसका कारण भी यही है कि वर्तमान में नई सोच के साथ काम शुरू करने के पहले ही यह बात होना शुरू हो जाती है कि उसने ऐसा कहा था-किया था। अब पता नहीं आगे क्या करेगा? इन सब बातों में ही हम वर्तमान का समय निकाल देते हैं और हमारे हाथ में कुछ नहीं आता। मात्र विवादों को जाल बनता जाता है और जीवन भर इन सबमें उलझे रहते है जिससे वर्तमान भी हाथ से निकल जाता है। समझदारी तो इसी में है कि वर्तमान में क्या परिस्थिति है? उसे कैसे सहजता से सुलझाया जा सकता है? उसी पर काम करना चाहिए। भविष्य और भूत की सोच में आज बेरोजगारी,तनाव, आत्महत्या जैसी परिस्थितियां बनती जाती हैं।
मंगलवार, 21 सितम्बर, 2021 भीलूड़ा
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