सम्यकदर्शन के आठ अंगों में से छठे स्थितिकरण अंग में प्रसिद्ध व्यक्तित्व की कहानी
मगधदेश के राजगृह नगर का राजा श्रेणिक था। उसकी रानी चेलिनी थी और उनका वारिषेण नाम का पुत्र था। वारिषेण उत्तम श्रावक था। एक बार वह उपवास धारण कर श्मशान में कायोत्सर्ग के लिए खड़ा था। उसी दिन बगीचे में गई मगध सुंदरी नामक वेश्या ने श्रीकीर्ति सेठानी का हार देखा। वह यह हार चाहती थी। वेश्या में आसक्त विद्युत चोर जब रात्रि में उसके घर आया तो वेश्या ने कहा कि श्री कीर्ति सेठानी का हार मुझे दो तो मैं जीवित रहूँगी और तुम मेरे पति होंगे अन्यथा नहीं। यह सुन विद्युत चोर श्री कीर्ति सेठानी के घर हार चुराने गया। गृह रक्षकों तथा कोतवालों के कारण चोर भागने में असमर्थ हो गया तो वारिषेण के आगे हार को डालकर छिप गया। कोतवालों ने हार वारिषेण के आगे देखकर राजा श्रेणिक से कहा कि वारिषेण चोर है। यह सुन राजा ने कहा कि इस मूर्ख का मस्तक छेदकर लाओ। चाण्डाल ने मस्तक काटने के लिये जो तलवार चलाई वह फूलों की माला बन गई। यह अतिशय सुनकर राजा श्रेणिक ने वारिषेण से क्षमा मांगी। विद्युत चोर ने अभयदान पाकर राजा से सब वृत्तान्त कहा तब राजा वारिषेण को घर ले जाने के लिये उद्यत हुए, परन्तु वारिषेण ने कहा मैं दिगम्बर मुनि बनूँगा और बाद में वह सूरसेन गुरु के समीप मुनि हो गया।
एक समय वह मुनि राजगृह के समीप पलाशकूट ग्राम में चर्या के लिये प्रविष्ट हुए। वहां राजा श्रेणिक के मंत्री के पुत्र पुष्पडाल ने उन्हें पड़गाहा। चर्या कराने के बाद वह मुनि के साथ चला गया। वह वापस लौटना चाहता था, लेकिन मुनि हाथ पकड़कर उसे ले गये और उपदेश सुनाकर तप ग्रहण करा दिया, लेकिन पुष्पडाल अपनी स्त्री सोमिल्ला को नहीं भूला।
पुष्पडाल और वारिषेण दोनों मुनि 12 वर्ष तीर्थयात्रा कर भगवान वर्धमान स्वामी के समवशरण में पहुँचे। वहाँ वर्धमान स्वामी और पृथ्वी से सम्बन्ध रखने वाला एक गीत देवों के द्वारा गाया जा रहा था, पुष्पडाल ने भी गीत सुना। गीत का भाव था कि जब पति प्रवास को जाता है, तब स्त्री खिन्न चित्त होकर मैली कुचैली रहती है, परन्तु जब वह घर छोड़कर ही चल देता है, तब वह कैसे जीवित रह सकती है। पुष्पडाल को यह गीत अपने तथा सोमिल्ला के सम्बन्ध में लगा। वह उत्कण्ठित होकर चलने लगा।यह जानकर वारिषेण मुनि उसका स्थितिकरण करने के लिये उसे अपने नगर ले गये। चेलिनी ने उन दोनों मुनियों को देखकर विचार किया कि वारिषेण क्या चारित्र से विचलित होकर आ रहा है? परीक्षा के लिये उसने दो आसन दिये-एक सराग और दूसरा वीतराग। वारिषेण ने वीतराग आसन पर बैठकर कहा कि हमारा अन्तःपुर बुलाया जाए। महारानी चेलिनी ने आभूषणों से सजी हुई उसकी बत्तीस स्त्रियां बुलाकर खड़ी कर दी। वारिषेण ने पुष्पडाल से कहा कि ये स्त्रियां और मेरा युवराज पद तुम ग्रहण करो। यह सुनकर पुष्पडाल अत्यन्त लज्जित होता हुआ उत्कृष्ट वैराग्य को प्राप्त हो परमार्थ से तप करने लगा।
कहानी का सार है कि कर्म के उदय के कारण यदि कोई व्यक्ति पथ भ्रमित हो रहा हो तो उसे स्थितिकरण के माध्यम से सही राह दिखाना सम्यग दर्शन धर्म है। यह अंग व्यक्ति को धर्म से जोडे़ रखता है।
अनंत सागर
श्रावकाचार (24 वां दिन)
सोमवार, 24 जनवरी 2022, बांसवाड़ा
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