जो नियम, व्रत लिया है, उसमें अनजाने में, प्रमाद कर्म उदय से जो दोष लग जाए या यह कहने कि व्रत का एक देश भंग हो जाना अर्थात व्रत पूर्ण रूप से भंग नहीं हुआ है, बल्कि उसमें दोष लगा है। उस दोष को धार्मिक भाषा में अतिचार कहते हैं। अतिचार लगने के बाद सावधान हो जाना चाहिए और आगे ऐसे दोष नहीं हो, ऐसा संकल्प करना चाहिए, पर जो जान कर बार बार दोष करता है, वह अतिचार नहीं अनाचार है। अतिचार में मनुष्य अपने आस पास के धार्मिक साधनों के माध्यम से संभल जाता है। उसका तो प्रायश्चित भी है पर अनाचार का कोई प्रायश्चित नहीं है। अहिंसाणुव्रत पालन करने वाले को भी अतिचार लग सकते हैं।
आचार्य समन्तभ्रद स्वामी ने रत्नकरण्ड श्रावकाचार में अहिंसाणुव्रत के अतिचार का स्वरूप बताते हुए कहा है कि …
छेदनबन्धनपीडन, मतिभारारोपणं व्यतीचाराः ।
आहारवारणापि च, स्थूलवधाद्व्युपरतेः पञ्च ॥54॥
अर्थात- स्थूलवध से विरत श्रावक के छेदना, बाँधना, पीड़ा देना अधिक भार लादना और आहार का रोकना ये अहिंसाणुव्रत के पाँच अतिचार हैं।
नौ कोटि के साथ व्रत का पालन करने में व्रत भंग नहीं होता, पर नौ कोटि में से कुछ कोटि द्वारा व्रत में जो दोष लगता है, उसे अतिचार कहते हैं। छेदना, बांधना आदि करते हुए भी दोष नहीं लगता और यह करते दोष भी लगता है। कहने का अर्थ है कि यह सब अगर काषाय, द्वेष, बुद्धि से करता है तो दोष भी है और व्रत का भंग भी और पाप का कारण भी है, पर व्यवस्था की दृष्टि से यह किया जाता है तो दोष नहीं है पर व्रत में अतिचार लग सकता है। अतः सम्भव हो वहां तक व्रती मनुष्य को पशु आदि नहीं रखना चाहिए, यही उत्तम है।
तत्त्वार्थ सूत्र में आचार्य उमास्वामी महाराज ने अहिंसा व्रत की रक्षा करने के पाँच भावनाओं की चर्चा की है। बचनगुप्ति, मनोगुप्ति, ईयांसमिति, आदाननिक्षेपणसमिति और आलोकितपानभोजन ये पाँच अहिंसाव्रत की भावनाएँ हैं। इनके होने पर ही अहिंसाव्रत की रक्षा हो सकती है। वचन को वश में रखने से वाचनिक हिंसा से रक्षा होती है। मन को नियन्त्रित रखने अर्थात् मन से दूसरे के विषय में खोटा चिन्तन न करने से मानसिक हिंसा से रक्षा होती है। ईयांसमिति, आदान निक्षेपण समिति और देखभाल कर भोजन करने से कायिक हिंसा से रक्षा होती है। वास्तव में उक्त पाँच कार्यों के द्वारा ही मनुष्य हिंसा करता है। यहाँ इन पाँचों कार्यों पर नियन्त्रण लगाकर अहिंसाव्रत की रक्षा किस प्रकार हो सकती है, इसका सुगम समाधान दिया है ।
अनंत सागर
श्रावकाचार ( 60वां दिन)
मंगलवार, 1 मार्च फरवरी 2022, घाटोल
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