अंतर्मन से शुद्ध होने के लिए ध्यान और तप जरूरी
भगवान महावीर के जन्मकल्याणक पर विशेष
जैन धर्म के इस काल के अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर हुए हैं। आज उनका 2621वां जन्मकल्याणक है। भगवान महावीर ने पूर्ण अहिंसा पर जोर दिया और तब से ही “अहिंसा परमो धर्मः” जैनधर्म में एक प्रमुख सिद्धांत माना जाने लगा। उन्होंने लोक कल्याण का मार्ग अपनाकर विश्व को शांति का संदेश दिया है। उनका स्पष्ट मानना था कि निर्वाण प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को स्वयं के आचरण, ज्ञान और विश्वास को शुद्ध करना चाहिए। कोई भी मनुष्य बिना ध्यान और तप किए बिना अंतर्मन से शुद्ध नहीं हो सकता। वैसे तो भगवान महावीर जन्मकल्याणक पर उनके उपदेश, आदर्श, सिद्धांतों का बखान कई बार हुआ है। हमने और आपने इसे सुना भी है। इसबार आपको भगवान महावीर जन्मकल्याण से जुड़ी कुछ विशेषताओं से अवगत करवा रहे हैं। यह एक छोटा सा प्रयास है। यह जानकारी जैन संत, लेखक अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज ने हमें उपलब्ध करवाई है।
सहस्त्र नेत्रों से महावीर के मुखमंडल को निहारा
भगवान महावीर के जन्म होते ही स्वर्ग के सौधर्म इन्द्र ने 1,000 नेत्र बनाकर उनके मुखमंडल को निहारा। उनकी स्तुति करते हुए उन्होंने कहा कि इस संसार में इस जैसे सुन्दर किसी बालक का जन्म इस काल में अभी तक नहीं हुआ है।
जन्माभिषेक
महावीर के जन्म के कुछ समय बाद ही सौधर्म इन्द्र अपने इन्द्रों के साथ वैशाली- कुण्डलपुर आए और बालक को माता की गोद से लेकर उसे सुमेरु नामक पर्वत पर ले गए। उनका 1,008 कलशों से अभिषेक किया। वर्तमान के माप से उस कलश का मुख 12 किमी का, उदर 48 किमी का और उसकी गहराई 96 किमी की थी।
ऐरावत हाथी
सौधर्म इन्द्र जिस ऐरावत हाथी पर बालक को बैठाकर जन्माभिषेक के लिए ले जाते हैं, उस हाथी का माप इस प्रकार है-ऐरावत हाथी एक लाख योजन विस्तार वाला होता है। एक ऐरावत हाथी के 32 मुख होते हैं। एक- एक मुख पर चार- चार दांत होते हैं। प्रत्येक दांत पर एक तालाब होता है। एक- एक तालाब पर एक- एक कमल वनखण्ड होता है। एक- एक कमल खण्ड पर 32 महापद्म होते हैं तथा वह एक- एक महापद्म पर एक- एक योजन प्रमाण वाला होता है। एक- एक महापद्म पर एक- एक नाट्यशाला होती है। एक- एक नाट्यशाला में बत्तीस- बत्तीस अप्सराएं नृत्य करती हैं।
कुल मिलाकर एक ऐरावत हाथी के बत्तीस मुख, 128 दांत, 128 तालाब, 128 कमल वनखण्ड, 4096 महापद्म, 4096 नाट्यशाला और 1,31,072 अप्सराएं होती हैं। ध्यान देने योग्य बात यह है कि एक योजन दूरी 12 किलोमीटर की होती है।
जन्म के समय अतिशय
तीर्थंकर महावीर बालक जन्म से ही अतिशय सुन्दर थे। उनका शरीर अत्यन्त सुगंधित, पसीना रहित, मल-मूत्र रहित तो था ही, उनके शरीर पर 1008 शुभ और मांगलिक लक्षण जैसे चक्र, स्वस्तिक, तारामंडल, सूर्य, चंद्र आदि सुशोभित होते हैं।
शरीर का वर्ण तप्त स्वर्ण के समान होता है जिसमें शंख,गदा, चक्र आदि 108 लक्षण होते हैं।
शांति
बालक का जब जन्म हुआ, उस समय एक क्षण के लिए तीनों लोक नरक,स्वर्ग,मध्यलोक (मनुष्य,देव,नारकी,तिर्यंच) अत्यंत सुख का अनुभव करते हैं।
ज्ञान
जन्म से ही मतिज्ञान अर्थात सामान्य से, श्रुत ज्ञान अर्थात विशेष और अवधि ज्ञान अर्थात तीनों लोक में उनके साथ या अन्य प्रणियों के साथ क्या हुआ था, वह सब बातों को जानते हैं।
सात प्रकार की सेना
महावीर के जन्म के समय जब सौधर्म इन्द्र स्वर्ग के अन्य देवों के साथ नगरी में आते हैं तो उनके साथ हाथी, घोड़े, रथ, गंधर्व, अप्सराएं, प्यादों और बैल आदि होते हैं। वह इन सात प्रकार की बड़ी सेना लेकर राजा सिद्धार्थ के घर आते हैं।
मुनि आते हैं
जब सुमेरु पर्वत पर जब देवता भगवान का लोक अभिषेक करते हैं तो ऋद्धिधारी मुनि आकाश मार्ग से उनका अभिषेक देखते हैं। यह ऐसे मुनि होते हैं जिनके शरीर को स्पर्श करने वाली वायु यदि किसी रोगी मनुष्य को लग जाए तो उसका शरीर रोग मुक्त हो जाता है।
चिन्ह नियत करते हैं
जन्माभिषेक के समय में तीर्थंकर बालक के दाहिने पैर के अंगूठे में अनेक चिन्ह दिखाई देते हैं। उस समय इन्द्र को, जो चिन्ह सबसे पहले दिखाई देता है, वही चिन्ह वह भगवान का नियत कर देते हैं। मोक्ष में जाने के बाद जब- जब उनकी मूर्ति को मंदिरों में विराजमान करते हैं, तब उनको पहचानने के लिए मूर्ति पर वही चिन्ह अंकित किया जाता है।
स्वर्ग
तीर्थंकर बालक के साथ क्रीड़ा (खेलने) के लिए देवता आते हैं। उनके लिए कपड़े, भोजन आदि सभी वस्तुएं स्वर्ग से ही आती हैं।
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