11
Jul
छहढाला
दूसरी ढाल
मिथ्यादृष्टि की मान्यताएँ
मैं सुखी-दु:खी मैं रंक राव, मेरे धन गृह गोधन प्रभाव।
मेरे सुत-तिय मैं सबल दीन, बेरूप सुभग मूरख प्रवीन।।4।।
अर्थ – मिथ्यादृष्टि जीव मिथ्यादर्शन के प्रभाव से ऐसा मानता है कि मैं सुखी हूं, मैं दूखी हूँ, मैं गरीब हूँ, मैं राजा हूँ, मेरे धन है, मेरे घर है, मेरे गाय-भैसें हैं, मेरा बड़प्पन है, मेरे पुत्र है, मेरी स्त्री है, मैं बलवान हूँ, मैं कमजोर हूँ, मैं कुरूप हूँ, मैं सुन्दर हूँ, मैं मूरख हूँ, मैं पण्डित हूँ ।
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