पद्मपुराण के पर्व 76 में लक्ष्मण और रावण के बीच की वार्ता का प्रसंग आया है । यह प्रसंग बताता है कि जिनका अशुभ कर्म का उदय हो तो वह अन्त समय में सब कुछ जानते हुए भी कुछ नहीं समझ पाते हैं ।
लक्ष्मण युद्ध कर रहा था उसी समय लक्ष्मण को चक्ररत्न की प्राप्ति हो गई। यह देखकर रावण को याद आया कि अनंतवीर्य मुनि ने कहा था नारायण के हाथ मृत्यु होगी, तो क्या लक्ष्मण वही नारायण होगा? आज मैं एक भूमिगोचर से पराजित हो जाऊंगा। इस राजलक्ष्मी को धिक्कार है। आज मैं मोह कर्म के कारण पराजित हुआ हूं। मुझे धिक्कार है।
चक्ररत्न की प्राप्ति के बाद लक्ष्मण विभीषण की ओर देखकर रावण से कहता है कि तुम अभी भी सीता को छोड़ दो और राम से क्षमा याचना कर लो और कह दो कि मैं राम के आशीर्वाद से ही जीवित हूं क्यों कि बड़े लोग अभिमान भंग कर ही प्रसन्न हो जाते हैं। यह सुनने के बाद रावण लक्ष्मण से कहता हैं कि तू बिना कारण गर्व कर रहा है। आज मैं तेरी वह दशा करूँगा कि तू खुद देखेगा। मैं वही शक्तिशाली रावण हूं और तू वही भूमिगोचरी लक्ष्मण है। तुम्हें तुम्हारे पिता ने घर से निकाल दिया और वन-वन भटक रहे हो और तू नारायण बनने चला है। तू नारायण बन जाए या इन्द्र बन जाए मैं तेरा मान भंग करता हूं और आज ही मृत्यु को प्राप्त करवाता हूं । इतना सुनते ही लक्ष्मण ने चक्ररत्न रावण पर छोड़ दिया। चक्ररत्न से बचने के लिए रावण ने अनेक शस्त्रों का उपयोग किया पर उस चक्ररत्न ने रावण के वक्षस्थल को चीर दिया और रावण मृत्यु को प्राप्त हो गया।
जब तक पुण्य का अंश था तब तक रावण जीवित रहा और जैसे ही पुण्य का अंश समाप्त हुआ रावण मृत्यु को प्राप्त हो गया। तो देखा कर्मो का खेल रावण जानता था कि नारायण के हाथों मृत्यु होना है फिर भी वह समझ नहीं पाया और मृत्यु को प्राप्त हुआ ।
अनंत सागर
कर्म सिद्धान्त (पचासवां भाग)
13 अप्रैल,मंगलवार 2021
भीलूड़ा (राज.)
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