सातगौड़ा हमेशा खादी के वस्त्र पहना करते थे क्योंकि वह मानते थे कि खादी के वस्त्रों में जितनी सरलता और सहजता महसूस होती है, उतनी अन्य किसी से बने वस्त्र में नहीं होती । उनकी माता सत्यवती चरखा चलाती थीं । सत्यवती के शांत और सरल स्वभाव का प्रभाव सातगौड़ा पर अत्यधिक पड़ा था । वह दीक्षा लेने से पहले अपनी बहन कृष्णाबाई के साथ शिखरजी गए थे । वहां से वापस आने के बाद उन्होंने एकाशन आदि का नियम लिया था । सातगौड़ा अपने सभी साथियों के साथ मिलकर शास्त्रों पर चर्चा किए करते थे । अपने छोटे भाई कुंमगौड़ा का मधुर स्वर में ग्रंथवाचन सुनकर उनके मन में वैराग्य का भाव बढ़ता था। दरअसल सातगौड़ा के मन में वैराग्य भाव उत्पन्न होने का कारण कहीं न कहीं कुंमगौड़ा पाटील का मधुर प्रवचन भी था। सातगौड़ा सभी से कहते थे कि जिनेंद्र की वाणी पर पूर्ण श्रद्धा रखो । सातगौड़ा अन्य धर्मों की बुराई कभी नहीं करते थे। सातगौड़ा के सभी गांववालों से इतने मधुर संबंध थे कि उनके दीक्षा लेने के बाद सभी को अपार दुख हुआ था। गांववाले सातगौड़ा से कहते थे कि स्वामी, आप तो संसार से पार हो गए , हम वहीं के वहीं रह गए। उनकी वाणी सभी को शांति एवं आनंद प्रदान करती थी।
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May
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