मुनि पूज्य सागर की डायरी से
मौन साधना का 34वां दिन। मैं वह कर सकता हूं जो सिद्धों, भगवंतों ने किया है। मैं भगवान बन सकता हूं। मैं कषाय, राग-द्वेष से रहित हूं। मुझे दुःख नहीं होता है। किसी के कहने से मेरा कुछ बिगड़ने वाला नहीं है। मेरा कर्म ही मेरा भविष्य तय करेगा। यही सत्य है फिर क्यों हम अपनी शक्ति को पहचान नहीं पाते और विचलित हो जाते हैं।
ऐसा इसलिए कि अनादिकाल के संस्कार हमें यह सोचने पर मजबूर कर देते हैं कि हमने दूसरों को अपना कर्ता मान लिया है। मेरे बिना या उसके बिना मेरा काम नहीं होगा। एक ना एक दिन उसे मेरे पास आना ही पड़ेगा या मुझे उसके पास जाना ही पड़ेगा। मैं उससे परेशान हूं। उसे सबक सिखाना होगा। समय का इंतजार करो, अपना भी समय आएगा।
यही बातें हमें अपनी आत्मशक्ति तक नहीं पहुंचने देती हैं। आत्मशक्ति को पहचानने के लिए ही ध्यान, योग, तप, साधना, संयम, त्याग, उपवास, जाप, पूजन, अभिषेक करने का उपदेश धार्मिक ग्रन्थों में दिया गया है। यह सब हमें बकवास लगते हैं, पर इनको जीवन में बार- बार करने से ही हम अपनी शक्ति को पहचान सकते हैं। चंदन असली है या नकली, यह तो उसे जितना घिसेंगे, उसकी सुगंध से ही पता चलेगा। घिसने से चंदन अपने असली रूप में आता है, उसी प्रकार बार बार साधना आदि करने से आत्मशक्ति की प्राप्ति होती है। आत्मा की निर्मलता पर इस पर निर्भर करती है कि एक जन्म या लाखों -करोड़ों जन्म में शक्ति की पहचान होगी। पर यह तय है अगर बार- बार साधना आदि का पुरुषार्थ करते रहे हो तो एक ना एक दिन शक्ति की पहचान हो जाएगी और फिर हम परमात्मा बन जाएंगे।
मंगलवार, 7 सितम्बर, 2021 भीलूड़ा
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